माथेरान और पनवेल के बीच स्थित इरशालगढ़ किले के करीब इरशालवाडी गांव में अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। एक जीवित बचे ग्रामीण ने बताया कि इरशालवाडी में सिर्फ मिट्टी और मलबा बचा है। पीड़ित व्यक्ति के माता-पिता भी मलबे के ढेर के नीचे फंसे हुए हैं। दरअसल भूस्खलन के समय वह अपने चार दोस्तों के साथ पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक स्कूल में था।
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आपबीती सुनाते हुए पीड़ित शख्स ने कहा कि बुधवार रात करीब साढ़े दस बजे वह स्कूल के कमरे में बैठकर अपने दोस्तों के साथ बातचीत कर रहा था, तभी उसे तेज आवाज सुनाई दी। उन्होंने कहा, “मैं खुद को बचाने के लिए स्कूल से बाहर भागा। फिर मैंने देखा कि भूस्खलन हुआ है, जिससे हमारे घर ध्वस्त हो गए हैं।” अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता मलबे में फंसे हुए हैं। अब मेरे घर की जगह पर सिर्फ मिट्टी और मलबा है। कोई भी बाहर नहीं निकल पाया।“ जबकि पीड़ित का एक भाई भी है, जो पास के आश्रम स्कूल में पढ़ता है, लेकिन उसकी भी कोई जानकारी नहीं मिल रही है।
वहीँ, हादसे की खबर सुनकर पास के एक गांव से आई बुजुर्ग महिला ने रोते हुए कहा कि उसके परिवार के पांच लोग भूस्खलन के मलबे में दबे हुए हैं। अधिकारियों ने बताया कि भूस्खलन जहां हुआ है वह दुर्गम पहाड़ी इलाका है। इसलिए इरशालवाडी गांव में मलबे को हटाने के लिये भारी मशीनों और उपकरणों को नहीं ले जाया जा सकता है। इलाके में पहुंचने के लिए करीब तीन किमी पैदल चलना पड़ता है और यहां कोई पक्की सड़क तक नहीं है। वहीँ ख़राब मौसम की वजह से राहत कार्य में बाधा आ रही है।
अधिकारी ने बताया कि बचाव अभियान के लिए दो हेलीकॉप्टर तैयार रखे गए हैं, लेकिन मौसम साफ होने तक वे उड़ान नहीं भर सकते। अभी एनडीआरएफ की कई टीमें स्थानीय अधिकारियों के साथ बचाव कार्य में लगे हैं। जबकि फायर ब्रिगेड के अलावा कुछ स्थानीय पर्वतारोही भी बचाव अभियान में शामिल हैं। इस बीच, पीड़ित लोगों के रिश्तेदार अपने प्रियजनों के बारे में जानकारी के लिये घटनास्थल पर लगातार पहुंच रहे हैं।
इरशालवाडी एक आदिवासी गांव है। इलाके के घरों में जाने वाली एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि इरशालवाडी गांव में 45 घर थे और उनमें से 43 भूस्खलन से प्रभावित हुए हैं। उन घरों में 6 साल तक की उम्र के 25 बच्चों सहित 229 लोग रहते थे।