जनवरी से अगस्त के बीच अमरावती में 725 किसानों ने सुसाइड किया। वहीं, औरंगाबाद में 661 किसानों ने जान दी। इस तरह केवल इन दोनों जिलों में ही करीब 1,386 किसानों ने आत्महत्या किया। इन आठ महीने की अवधि में आत्महत्या करने वाले तकरीबन 75 प्रतिशत किसान इन दो रीजन से ही थे।
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बता दें कि ऐसे में औरंगाबाद और अमरावती क्षेत्र में किसानों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले साल भी कमोबेश यही हालात थे। अमरावती और औरंगाबाद के बाद तीसरे और चौथे स्थान पर नाशिक और नागपुर का आता है। इन दोनों जिलों में 252 और 225 किसानों ने आत्महत्या किया हैं। देखें कोंकण का हाल: पिछले साल पुणे में जहां 11 किसानों ने सुसाइड किया था, वहीं, इस साल जनवरी से अगस्त तक की अवधि में 12 किसानों ने आत्महत्या किया। कोंकण जिले में ऐसा एक भी मामला रिकॉर्ड नहीं किया गया। राज्य के सीएम पद की कमान संभालने के बाद एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र को किसान आत्महत्या मुक्त प्रदेश बनाने की शपथ ली है। इसके लिए उन्होंने कुछ योजना भी तैयार की है। राज्य के कृषि डिपार्टमेंट ने एक मसौदा तैयार किया है, जिसके तहत राजस्व एवं कृषि विभाग के अधिकारी एक दिन किसान के घर या उनके खेत में गुजारेंगे।
ये हैं आत्महत्या की वजह?: बता दें कि किसान हित के लिए काम करने वाले संगठन और कार्यकर्ता इसकी कई वजहें बताते हैं। मुख्य कारणों में सरकारी अमले का अभी तक भी सीधे किसानों के संपर्क में न आना, सिंचाई की अच्छी व्यवस्था का न होना, फसलों का सही दाम नहीं मिलना, मुआवजे का समय पर सही वितरण न होना और सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों के लिए ठोस योजना का अभाव।