मूर्ति बनाने का कारोबार इतना शानदार चल रहा है कि अब यहां पर सालाना 80 से 90 करोड़ रुपये की मूर्तियां बनाई जाती है। इस गांव में मूर्ति बनाने के लिए 500 फैक्ट्रियां लगाई गई हैं। अब इस गांव की पहचान ‘इंडिया के गणपति मार्केट’ के तौर पर होती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस गांव में बनने वाली भगवान गणेश की मूर्तियों की इतनी ज्यादा मांग है कि खरीददारों की वजह से डेढ़ से दो किमी लंबा जाम लग जाता है। गांव के बाहर बड़े-बड़े ट्रकों में मूर्तियों को लोड किया जाता है।
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यहां लोग मूर्ति खरीदने के लिए मुंबई, पुणे जैसे शहरों से आते हैं। हमरापुर गांव की मूर्तियां केवल भारत में ही मशहूर नहीं हैं, बल्कि इसकी मांग अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में है। यहां से मूर्तियों को विमानों द्वारा भेजा जाता है। गांव में गणेश चतुर्थी के अवसर पर तीन करोड़ से ज्यादा मूर्तियों को बनाया जाता है। इंजीनियर बने मूर्तिकार: बता दें कि भगवान गणेश की मूर्ति बनाने के काम ने लोगों को अपनी नौकरियों को छोड़ने पर भी मजबूर कर दिया है। 10 साल पहले मुंबई में काम करने वाले श्रीराम पाटिल ने अपने घर में ही कारखाना खोल दिया है। उन्होंने अपने कारखाने में ट्रेडिशनल मूर्तियों की जगह अलग-अलग तरह की प्रतिमाएं बनाना शुरू किया है। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां इतनी मसहूर है कि विदेशों से ऑर्डर आने लगे है। पिता के कारोबार में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए उनके दो इंजीनियर बेटों ने भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपनी बेहतरीन नौकरियों को छोड़कर मूर्ति बनाना शुरू किया है। अब ये लोग लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।
बैंक का जॉब छोड़ बने मूर्तिकार: इस गांव में केवल इंजीनियर ही नहीं, बल्कि बैंकर्स ने मुर्तिया बनाना शुरू कर दिया है। श्रीराम के पड़ोस में रहने वाले सतीश समेण बैंक में नौकरी करते थे। लेकिन मूर्तियों से ऐसा लगाव हुआ कि उन्होंने बैंक कि नौकरी छोड़कर मूर्तियां बनाने लगे। इस काम में सतीश का परिवार भी उनका हाथ बंटाता है। इस गांव में मूर्तिकारों का यूनियन भी बनाया गया है, जो उनकी भलाई के लिए काम करता है।