राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने एक कार्यक्रम में कहा “कभी-कभी लोगों से कहता हूं कि भाई महाराष्ट्र से, विशेषकर के मुंबई-पुणे यहां से, गुजरातियों और राजस्थानियों को निकाल दो तो तुम्हारे यहां कोई पैसे बचेंगे ही नहीं। यह जो कहलाती है आर्थिक राजधानी यह आर्थिक राजधानी कहलाएगी ही नहीं।”
केसरकर ने कहा, राज्यपाल द्वारा दिया गया बयान राज्य का अपमान करने वाला बयान है। राज्यपाल एक संवैधानिक पद है और मुख्यमंत्री को इस संबंध में केंद्र सरकार को पत्र लिखने का पूरा अधिकार है। इसलिए केंद्र सरकार राज्यपाल को सूचित कर सकती है कि ऐसा बयान दोबारा नहीं दिया जाना चाहिए।
मुंबई एक महानगरीय शहर है। यहां न केवल दो समुदायों ने योगदान दिया है, बल्कि कई समुदायों ने मुंबई के विकास में योगदान दिया है। इसमें मुंबई का मूल मराठी समुदाय है। यह भी सच है कि मुंबई के निर्माण में मराठी लोगों का सबसे ज्यादा योगदान रहा है। तो फिर दो समाज क्यों? पारसी समुदाय ने भी मुंबई के औद्योगिक विकास में बहुत योगदान दिया है।
यह योगदान किसी समाज के कारण नहीं बल्कि सभी समाजों के एक साथ आने के कारण मिला है। लोग लाठी और लोटा लेकर ही मुंबई आते थे लेकिन इस शहर ने उन्हें आश्रय दिया और उनका पालन-पोषण किया। केसरकर ने यह भी कहा कि कोई भी बाहर से निवेश लेकर मुंबई नहीं आया है।
राज्यपाल के बयान का बीजेपी विधायक नितेश राणे ने समर्थन जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि उस समाज में उनके योगदान का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए, राज्यपाल ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया है। राज्यपाल द्वारा किसी का अपमान नहीं किया गया है, उन्होंने उस समाज को उनके योगदान का श्रेय दिया है। उन्होंने उनके खिलाफ बोलने वालों को भी फटकार लगाई है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि उन्होंने मराठी लोगों और युवाओं को कितना बड़ा किया है।
इस बीच मनसे ने भी भगत सिंह कोश्यारी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मनसे प्रवक्ते संदीप देशपांडे (Sandeep Deshpande) ने कहा है कि जिन बातों की जानकारी नहीं है, महाराष्ट्र का इतिहास नहीं पता है, उन मुद्दों पर राज्यपाल को बोलने की जरूरत नहीं है। देशपांडे ने यह भी कहा है कि राज्यपाल के लिए यह पहली चेतावनी है।