विद्युत कंपनियों से संबंधित कर्मचारी संघ ने राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली कंपनियों के निजीकरण के विरोध में 72 घंटे की हड़ताल बुलाई थी। इस हड़ताल में वायरमैन, अभियंताओं और अन्य कर्मचारियों की 30 से अधिक यूनियनों ने हिस्सा लिया था। आधी रात से ही तीन बिजली कंपनियों- महावितरण, महापारेषण, महानिर्मिती के लगभग 86 हजार कर्मचारी, अधिकारी और इंजीनियर, 42 हजार संविदा कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड ने काम करना बंद कर दिया था।
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महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने कहा कि सरकार का सरकारी बिजली कंपनियों के निजीकरण का कोई इरादा नहीं है। फडणवीस ने कहा, राज्य सरकार और आंदोलनकारी ट्रेड यूनियनों के बीच कम्युनिकेशन गैप के कारण यह सब हुआ। उन्होंने दावा किया कि अगर राज्य सरकार और ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों के बीच पहले बैठक हुई होती, तो हड़ताल नहीं होती।” उपमुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार नहीं चाहती कि किसी भी सरकारी कंपनी का निजीकरण किया जाए। फडणवीस ही ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे है। फडणवीस के साथ बैठक के बाद हड़ताल वापस लेने की घोषणा सबऑर्डिनेट इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय ठाकुर (Sanjay Thakur) ने की। बता दें कि महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (महावितरण), महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (महापारेषण) और महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महानिर्मिती) राज्य के स्वामित्व वाली बिजली कंपनियां हैं, जिसके कर्मचारी आज हड़ताल का हिस्सा बने थे।
हालांकि, राज्य सरकार ने महाराष्ट्र आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (मेस्मा) लागू कर दिया है और हड़ताली बिजली कर्मियों के खिलाफ एक्शन लेने की चेतावनी दी थी। साथ ही सरकार ने संबंधित अधिकारियों को राज्य में बिजली की सामान्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया था।