पुणे के चार व्यवसायियों द्वारा दायर जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि न तो कुरान और न ही हदीस (Hadith) में ईद-ए-मिलाद जुलूस के दौरान डीजे बजाने और लेजर लाइट का उपयोग करने के लिए कहा गया है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धार्मिक त्योहारों में ध्वनि-प्रदूषण नियमों का पालन किया जाना चाहिए और कोई भी धर्म या समुदाय डीजे और स्पीकर का उपयोग करने के लिए संवैधानिक अधिकार का हवाला नहीं दे सकता है।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने हाई डेसीबल साउंड सिस्टम और खतरनाक लेजर बीम पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत द्वारा दायर याचिका पर अपने 20 अगस्त के आदेश का हवाला दिया और कहा कि यह मामला भी व्यवसायियों द्वारा उठाये गए मुद्दे जैसा ही था। इसलिए इस याचिका का निष्कर्ष आ चुका है।
याचिकाकर्ताओं को दी नसीहत
बुधवार को पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या कोई वैज्ञानिक अध्ययन है जो बताता हो कि लेजर लाइटें हानिकारक होती हैं। न्यायमूर्ति उपाध्याय ने कहा, ”मोबाइल टावरों को लेकर भी काफी हंगामा मचा… क्या आप ने इसका (लेजर लाइट के प्रभाव) सामना किया हैं? जब तक यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हो जाता कि ये लेजर लाइटें नुकसान पहुंचाती हैं, तब तक हम इस मुद्दे पर निर्णय कैसे करेंगे। जनहित याचिका दायर करने से पहले आपको बेसिक रिसर्च करना चाहिए।“ मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से आगे कहा, “आपको प्रभावी निर्देश जारी करने में अदालत की सहायता करनी चाहिए। हम विशेषज्ञ नहीं हैं। सबके अलग-अलग विचार हैं। आप लोग सोचते हो कि हम हर बीमारी का इलाज हैं। जाईये और गहराई से शोध करिए। यदि डीजे गणेश चतुर्थी के लिए हानिकारक है, तो यह ईद के लिए भी हानिकारक है।“