मिली जानकारी के मुताबिक, कुछ जैन संगठनों (Jain Charitable Trust) ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर (PIL) कर मांग की थी कि सार्वजनिक स्थानों पर और टीवी सहित अन्य मीडिया के माध्यम से मांसाहारी संबंधित विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन विज्ञापनों (मांसाहारी खाद्य पदार्थों के विज्ञापन) के कारण उनके शांति से रहने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। इस याचिका पर आज बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
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हाईकोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि अगर आप टीवी पर विज्ञापनों से परेशान हैं तो टीवी बंद कर दें। जीने के मौलिक अधिकार का हवाला देते हुए जैन समुदाय के कुछ संगठनों की ओर से याचिका दायर की गई थी। हालांकि कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आप किसी और के अधिकारों का हनन नहीं कर सकते है। लेकिन कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नई याचिका दायर करने की अनुमति भी दे दी है। याचिकाकर्ताओं में श्री आत्म कमल लब्धिसूरीश्वरजी जैन ज्ञानानंदिर ट्रस्ट (Shree Atma Kamal Labdhisurishwarji Jain Gyanrnandir Trust), सेठ मोतीशा धार्मिक और चैरिटेबल ट्रस्ट (Sheth Motisha Religious and Charitable Trust), श्री वर्धमान परिवार (Shri Vardhaman Parivar) और मुंबई के व्यवसायी ज्योतिंद्र रमणीकलाल शाह (Jyotindra Ramniklal Shah) शामिल थे।
उन्होंने जनहित याचिका दायर करते हुए कहा था कि इस तरह के विज्ञापन शांति से जीने के अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करते है। उन्होंने यह भी दावा किया कि बच्चों सहित उनके परिवार को ऐसे विज्ञापन देखने के लिए मजबूर होना पड़ता है और ये विज्ञापन बच्चों के दिमाग को प्रभावित करते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने साथ ही कहा कि वे मांसाहारी भोजन की बिक्री और उसे खाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनकी शिकायत केवल ऐसी चीजों के विज्ञापन के खिलाफ है।