महाराष्ट्र की एक अदालत द्वारा 2017 में गैरकानूनी अत्याचार निवारण अधिनियम (UAPA) के तहत नक्सलियों के साथ कथित संबंधों के लिए साईबाबा व पांच अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। गढ़चिरौली कोर्ट ने जीएन साईबाबा समेत पांच लोगों को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का दोषी पाया और उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
जबकि, 22 मई 2020 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा के पैरोल आवेदन को भी खारिज कर दिया, जिसमें उनके खराब स्वास्थ्य के आधार पर रिहाई की गुहार लगाई गई थी। उन्होंने पैरोल मांगने की एक वजह अपनी बीमार मां को भी बताया था, जो हैदराबाद में कैंसर से पीड़ित थीं। उनकी मां का अगस्त 2020 में निधन हो गया।
यह भी पढ़ें
Mumbai Gold Smuggling: मुंबई एयरपोर्ट पर कस्टम ने पकड़ा 8.40 करोड़ का सोना, तस्कर के बेल्ट से हुआ बरामद
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 28 जुलाई 2020 को मेडिकल आधार पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।जबकि, 22 मई 2020 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा के पैरोल आवेदन को भी खारिज कर दिया, जिसमें उनके खराब स्वास्थ्य के आधार पर रिहाई की गुहार लगाई गई थी। उन्होंने पैरोल मांगने की एक वजह अपनी बीमार मां को भी बताया था, जो हैदराबाद में कैंसर से पीड़ित थीं। उनकी मां का अगस्त 2020 में निधन हो गया।
क्या थे आरोप?
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक अदालत ने 2017 में उन्हें और चार अन्य को माओवादियों से संपर्क रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में संलिप्तता के लिए सजा सुनाई थी। तब से वह नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद हैं। इस मामले में उन्हें 2014 में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तारकिया गया था।
साईबाबा की पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक, साईबाबा ह्रदय और किडनी रोग समेत कई अन्य रोगों से ग्रस्त हैं। साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं। माओवादियों से कथित संबंध के चलते उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज (Ram Lal Anand College) ने सहायक प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया है।