कहानी जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस श्याम चांडक की खंडपीठ ने पांच आरोपियों द्वारा 2022 की विशेष अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर आज फैसला सुनाया। विशेष अदालत ने 2022 में आरोपियों को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था। जिसे आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
पांचों आरोपियों को जून 2018 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 21 जून को भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपी महेश राउत को अंतरिम जमानत दी थी। शीर्ष कोर्ट ने राउत को अपनी दादी की मृत्यु के बाद धार्मिक क्रिया-कर्म में शामिल होने के लिए 26 जून से 10 जुलाई तक अंतरिम जमानत दी थी।
आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट और शोधकर्ता महेश राउत को एल्गार परिषद मामले में शामिल होने के लिए 2018 में गिरफ्तार किया गया था। तलोजा सेंट्रल जेल में बंद एक्टिविस्ट ने अपनी दादी की मृत्यु के बाद गढ़चिरौली जाने के लिए दो सप्ताह की अस्थायी जमानत मांगी थी।
क्या है मामला?
पुणे के भीमा कोरेगांव गांव में हिंसा के सिलसिले में जून 2018 को यूएपीए के तहत 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसी का दावा है कि महेश राउत समेत कुछ अन्य आरोपियों के माओवादियों से संबंध है। एल्गार परिषद कार्यक्रम और अगले दिन भड़के दंगों के लिए फंडिंग की गई थी। यह मामला 31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के पुणे के शनिवारवाड़ा में कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित एल्गार परिषद के दौरान भड़काऊ भाषण देकर लोगों को उकसाने से संबंधित है। आरोप है कि इस आयोजन से विभिन्न जाति समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया गया, जिससे दंगा हुआ।
इसी साल मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जेल में बंद गौतम नवलखा को जमानत दे दी थी। नवलखा पर माओवादियों के साथ कथित संबंध का भी आरोप है। उन्हें 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि 73 वर्षीय गौतम नवलखा को उनकी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के चलते शीर्ष कोर्ट के आदेश के बाद नवंबर 2022 से घर में नजरबंद रखा गया था।
नवलखा और अन्य लोगों को सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने और 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव स्मारक पर जातीय दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस दौरान भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। जबकि कई लोग घायल हुए थे।