पहले भी गैंगवार पर बनाईं कई कमजोर फिल्में
महेश मांजरेकर इससे पहले भी गैंगवार पर कई कमजोर फिल्में बना चुके हैं। ‘द पावर’ उनसे भी कमजोर है। इसमें मांजरेकर खुद माफिया सरगना के किरदार में हैं। ‘द गॉडफादर’ के मर्लिन ब्रांडो की इतनी बचकाना पैरोडी शायद ही किसी ने की हो। उनके छोटे बेटे के किरदार में विद्युत जामवाल ने अल पशीनो की नकल उतारने की कोशिश तो बहुत की, बात नहीं बनी। मांजरेकर के गिरोह के एक वफादार सदस्य की बेटी श्रुति हासन और विद्युत जामवाल ( Vidyut Jamwal ) की रसहीन प्रेम कहानी मारधाड़ के बीच लडख़ड़ाती रहती है। सलीम-सुलेमान का ठीक-ठाक-सा गाना ‘सुन ले तू मेरी अर्जियां’ इस लडख़ड़ाहट में दब कर रह गया।
दो गोलियां खाकर भी लड़ता रहा हीरो
मारधाड़ आटे में नमक के बराबर ही हजम होती है। आटे के बराबर हो जाए तो फिल्म का हाजमा बिगड़ जाता है। ‘द पावर’ का इसीलिए बिगड़ा हुआ है। रह-रहकर गोलियां चलती रहती हैं। जहां गोलियां नहीं चलतीं, लात-घूंसे चलने लगते हैं। हर दूसरे सीन में किसी न किसी का जनाजा उठता है। गलतफहमी की शिकार श्रुति हासन ने एक सीन में धड़ाधड़ दो गोलियां विद्युत जामवाल के सीने में उतार दीं, तो लगा कि ये भी गए काम से। लेकिन वह हीरो क्या, जो गोलियां खाकर चल दे। विद्युत जामवाल ‘मैं वापस आऊंगा’ की तर्ज पर लौटे और बदमाशों का बैंड बजाने में जुट गए।
कराटेनुमा मारधाड़ को ही एक्टिंग नहीं कहते
जब पूरी फिल्म मारधाड़ के सहारे खींची जा रही हो, तो एक्टिंग के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं रहती। ‘द पावर’ के कोरी भावुकता वाले दृश्यों में क्या विद्युत जामवाल, क्या श्रुति हासन और क्या खुद महेश मांजरेकर, सभी ओवर एक्टिंग का शिकार हैं। विद्युत जामवाल के साथ दिक्कत यह है कि जनाब उछल-उछल कर कराटेनुमा मारधाड़ को ही एक्टिंग मानते हैं। किसी भी मूड का सीन हो, उनके हाव-भाव एक-से रहते हैं। यहां गालिब का एक शेर भी वह इतने सपाट ढंग से पढ़ते हैं (और गलत पढ़ते हैं), गोया शेर नहीं, रट कर पहाड़ा पढ़ रहे हों। शेर यह था- ‘उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक/ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।’ वाकई ‘द पावर’ में किसी का हाल अच्छा नहीं है। हर नजरिए से बेहाल फिल्म। जो देखे, उसका भला। जो न देखे, उसका और भी भला।