कहानी बागपत के जोहर गांव में स्थित ये कहानी है तोमर परिवार की बहू चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की, जो अपनी जिंदगी में घर का काम करने, खाना पकाने, अपने पति की सेवा करने, खेत जोतने और भट्टी में काम करने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं करती हैं। उनके पति दिन भर हुक्का फूंकते और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. जिंदगी के 60 साल ऐसे ही जीवन निकाल देने एक बाद चन्द्रो और प्रकाशी को अचानक से अपने शूटिंग टैलेंट का पता चलता है। लेकिन शूटर बनने का सपना देखने लगी इन दोनों दादियों के सामने एक-दो नहीं बल्कि हजारों चुनौतियां हैं। इनमें से सबसे बड़ी है शूटिंग की ट्रेनिंग लेना और उससे भी बड़ी है टूर्नामेंट में जाकर खेलना और कैसे वो इन चुनौतियां को पार करती हैं इसी पर फिल्म बनी है।
परफॉर्मेंस भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू ने इस फिल्म की कमाल की एक्टिंग की है। मेकअप में उनके भले ही कमी रह गई हो लेकिन उनकी एक्टिंग लाजवाब है। पर्दे पर जब दोनों साथ में होती हैं, तो दोनों की कैमेस्ट्री देखने में काफी मजा आता है। भूमि पेडनेकर इससे पहले भी ऐसे चौंकाने वाले रोल कर चुकी है। फिल्म दम लगा के हाईशा में मोटापा बढ़ाकर उन्होंने सबको चौंका दिया था और अब एक बूढ़ी औरत का किरदार भी उन्होंने बखूभी निभाया है। वहीं तापसी अपनी एक्टिंग से सबको कायल कर ही चुकी हैं, इस फिल्म में भी उन्होंने शानदार एक्टिंग की है।वहीं बात करें फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट की तो उन्होंने भी अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है। प्रकाश झा, विनीत कुमार सिंह, पवन चोपड़ा अपने- अपने रोल को बखूबी निभाया है। प्रकाश झा ने नेगेटिव किरदार में कमाल की एक्टिंग की है।
फिल्म महिला सशक्तिकरण को दर्शाती है और एक सोलिड मैसेज देती है कि औरत अगर ठान ले तो क्या कुछ नहीं कर सकती है। इसलिए मैं इस फिल्म को देना चाहूंगी 3.5 स्टार।