सोमवार को शहीद जगराम सिंह तोमर की पार्थिव देह के दर्शन करने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। उनकी शहादत को लोगों ने नम आंखों से सलाम किया। इस मौके पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह, नगर निगम में महापौर अशोक अर्गल, मुरैना कलेक्टर भास्कर लाक्षाकार व मुरैना एसपी आदित्यप्रताप सिंह भी मौजूद रहे। शहीद की पार्थिव को कलेक्टर व एसपी ने कंधा भी दिया। आज हर आंख अपने गांव के शहीद जगराम की शहादत को याद करते हुए आतंकवादियों को कोस रही थी। लोगों में बस एक ही चर्चा थी कि बस अब बहुत हुआ, अब पाकिस्तान को सबक सिखाना ही होगा।
‘जीजी रक्षाबंधन पर नहीं आ पाऊंगा, दीपावली पर मनाएंगे भाईदूजÓ
जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में शनिवार को शहीद हुए नायब सूबेदार जगराम सिंह मिलनसार थे। परिवार ही नहीं गांव के लोग भी बहुत स्नेह रखते थे। अप्रैल में ही अवकाश से वापस ड्यूटी पर गए थे। जब परिजन और मित्र उदास हुए तो कहकर गए थे कि जल्द ही फिर आएंगे। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे नायब सूबेदार जगराम सिंह पूरे परिवार में सबके चहेते थे।
जगराम की बहन उर्मिला देवी को अपने छोटे भाई की शहादत की खबर मिली तो वे दौड़ी चली आईं। उन्हें दुख है कि इस रक्षाबंधन को वे अपने जाबांज भाई को राखी नहीं बांध पाईं। उर्मिला देवी ने बताया कि रक्षाबंधन पर जब उन्होंने भाई से आने को बोला तो सीमा पर तनाव के चलते आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी, लेकिन उन्होंने कहा था कि जीजी दीपावली पर पक्का आऊंगा और भाईदूज मनाएंगे, लेकिन इससे पहले ही शहीद हो गए। जगराम के बड़े भाई मंगल सिंह कहते हैं कि सीमा पर तनाव को देखते हुए हम सब लोग हमेशा जगराम के साथ सभी जवानों की सलामती के लिए दुआ करते रहते थे। सितंबर में जगराम सूबेदार बनने वाले थे और उसके बाद घर आने वाले थे।
शहीद होकर आएंगे यह किसी को अनुमान नहीं था। कृषि विभाग में एसएडीओ से 31 जनवरी को ही रिटायर हुए मंगल सिंह कहते हैं चंबल घाटी के लोग देश की सुरक्षा के लिए हमेशा आगे रहे हैं। हमारे भाई ने भी देश की खातिर शहादत दी है। पाकिस्तान परोक्ष रूप से युद्ध कर रहा है। अब तो राजनीतिक सुस्ती त्यागकर निर्णायक जंग होनी चाहिए। राजेंद्र सिंह तोमर अपने बचपन के मित्र की शहादत पर चर्चा करते ही रो पड़े। वे कहते हैं कि ऐसे कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे, पाकिस्तान से बदला लेना चाहिए।
स्कूल के दिनों से ही था देशभक्ति का जज्बा
शहीद जगराम सिंह तोमर पढऩे में तेज थे और शुरू से ही देशभक्ति के रंग में डूबे थे। प्राथमिक शिक्षा गांव में ही करने के बाद हायर सेकंडरी उन्होंने कोंथरकलां से की थी। वर्ष 1992 में सेना में सिपाही से भर्ती होकर, नायब सूबेदार तक पहुंच गए। सितंबर में पदोन्नत होने वाले थे, इसके बाद घर आकर अपने लिए लैपटॉप व बाइक खरीदने वाले थे। भतीजे ज्ञानेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि तीन दिन पूर्व ही उनसे बात हुई थी। ग्वालियर आकर पदोन्नति पर पार्टी करने के साथ ही कैंटीन से लैपटॉप व बाइक खरीदने की बात कह रहे थे।
ग्वालियर में मकान बनाना चाहते थे
बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए फिक्रमंद शहीद जगराम सिंह तोमर ग्वालियर में आदित्यपुरम स्थित अपने प्लॉट पर मकान बनाने की भी तैयारी में थे। बड़े भाई मंगल सिंह ने बताया कि पोरसा में धनेटा रोड पर जगराम का स्वयं का पक्का मकान है और दो प्लॉट भी पड़े हैं। जगराम के तीन संतान में बेटी खुशबू सबसे बड़ी है। उसके बाद रोशनी और बेटा नीरज सिंह तोमर पिता की शहादत की खबर के बाद बहुत दुखी हैं।