बानमोर:
वर्ष 2018 में शासन ने बानमोर गांव में पहाड़ी पर करीब 36 बीघा जमीन में मंडी का निर्माण करवाया गया। इसके निर्माण पर करीब 4 करोड़ की राशि खर्च की गई लेकिन कृषि उपज मंडी कस्बे से दूर व सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त स्थान पर न होने के कारण किसान तथा व्यापारी नहीं पहुंच पा रहे हैं। मध्य प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह द्वारा 3 अक्टूबर 2018 को उक्त कृषि उपज मंडी का शिलान्यास किया गया था। मंडी परिसर में कैंटीन, दो बड़े टीनशैड, लैबोरेटरी, मीटिंग हॉल, किसानों के बैठने के लिए उपयुक्त स्थान जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन खरीद आज तक शुरू नहीं हो सकी है जिससे कई बार कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ जाते हैं।
वर्ष 2018 में शासन ने बानमोर गांव में पहाड़ी पर करीब 36 बीघा जमीन में मंडी का निर्माण करवाया गया। इसके निर्माण पर करीब 4 करोड़ की राशि खर्च की गई लेकिन कृषि उपज मंडी कस्बे से दूर व सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त स्थान पर न होने के कारण किसान तथा व्यापारी नहीं पहुंच पा रहे हैं। मध्य प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह द्वारा 3 अक्टूबर 2018 को उक्त कृषि उपज मंडी का शिलान्यास किया गया था। मंडी परिसर में कैंटीन, दो बड़े टीनशैड, लैबोरेटरी, मीटिंग हॉल, किसानों के बैठने के लिए उपयुक्त स्थान जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन खरीद आज तक शुरू नहीं हो सकी है जिससे कई बार कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ जाते हैं।
सिहोनियां:
वर्ष 2018 में सिहोनियां में कृषि मंडी स्थापित की गई। करीब 40 से 50 लाख रुपए खर्च कर पूरा परिसर तैयार किया गया। वहां कार्यालय, बाउंड्री करके गेट भी लगाया गया। उस मंडी में एक कर्मचारी श्रीकृष्ण गोस्वामी तैनात किया गया था, अब वह भी रिटायर्ड हो गया। जब से मंडी स्थापित की गई है, तब से आज तक वहां खरीद शुरू नहीं हो सकी है। सिर्फ शुरूआत में एक बार समर्थन मूल्य पर खरीद हुई थी, उसके बाद वह भी बंद हो गई। आज स्थिति यह है कि मंडी परिसर में जंगल जैसे हालात हो गए हैं। बड़े- बड़े झाड़ उग आए हैं। परिसर को देखकर नहीं लगता कि यहां कभी मंडी थी। आसपास के किसानों का कहना हैं कि फसल बेचने के लिए 30-35 किमी दूर मुरैना मंडी में जाना पड़ता है।
वर्ष 2018 में सिहोनियां में कृषि मंडी स्थापित की गई। करीब 40 से 50 लाख रुपए खर्च कर पूरा परिसर तैयार किया गया। वहां कार्यालय, बाउंड्री करके गेट भी लगाया गया। उस मंडी में एक कर्मचारी श्रीकृष्ण गोस्वामी तैनात किया गया था, अब वह भी रिटायर्ड हो गया। जब से मंडी स्थापित की गई है, तब से आज तक वहां खरीद शुरू नहीं हो सकी है। सिर्फ शुरूआत में एक बार समर्थन मूल्य पर खरीद हुई थी, उसके बाद वह भी बंद हो गई। आज स्थिति यह है कि मंडी परिसर में जंगल जैसे हालात हो गए हैं। बड़े- बड़े झाड़ उग आए हैं। परिसर को देखकर नहीं लगता कि यहां कभी मंडी थी। आसपास के किसानों का कहना हैं कि फसल बेचने के लिए 30-35 किमी दूर मुरैना मंडी में जाना पड़ता है।
सुमावली:
सुमावली कस्बे में लाखों रुपए की लागत से 42 साल पूर्व कृषि मंडी भवन का निर्माण कर बाउंड्री कराई गई थी। किसानों के लिए पानी की टंकी रखी गई और प्लेटफार्म पर नल टोंटी भी फिटिंग की लोकार्पण न होने से लोग भवन से टीन शेड, शटर, दरवाजों से किबाड़- खिडक़ी निकाल लें गए। उसके बाद 2018 में विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार ने मंडी भवन निर्माण के लिए 86 लाख की लागत से भूमि पूजन किया किन्तु शासन से राशि न आने पर आज तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। क्षेत्र के किसान स्थानीय व्यापारियों को मजबूरन ओने- पोने भाव मेंं फसल बेच रहे हैं या फिर मुरैना जौरा मंडी पहुंच रहे हैं।
कथन
सुमावली कस्बे में लाखों रुपए की लागत से 42 साल पूर्व कृषि मंडी भवन का निर्माण कर बाउंड्री कराई गई थी। किसानों के लिए पानी की टंकी रखी गई और प्लेटफार्म पर नल टोंटी भी फिटिंग की लोकार्पण न होने से लोग भवन से टीन शेड, शटर, दरवाजों से किबाड़- खिडक़ी निकाल लें गए। उसके बाद 2018 में विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार ने मंडी भवन निर्माण के लिए 86 लाख की लागत से भूमि पूजन किया किन्तु शासन से राशि न आने पर आज तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। क्षेत्र के किसान स्थानीय व्यापारियों को मजबूरन ओने- पोने भाव मेंं फसल बेच रहे हैं या फिर मुरैना जौरा मंडी पहुंच रहे हैं।
कथन