इस बाहुबली पूर्व विधायक के खिलाफ पीएम मोदी को खून से लिखा पत्र, कहा- कभी भी हो सकती है मेरी हत्या यहां बता दें कि जम्मू-कश्मीर के सोपियां और पुलवामा से करीब दो दर्जन युवक 2001 में ढबारसी स्थित एक मदरसे में पढ़ने के लिए आए थे। यहां एक साल तक पढ़ाई करने के दौरान उनकी स्थानीय युवकों से भी अच्छी दोस्ती हो गई। जब कश्मीरी युवक वापस लौटे तो अपने साथ ढबारसी के राशिद पुत्र बाबू और फुरकान पुत्र अलीजान को भी अपने साथ ही ले गए। इसके बाद फुरकान तो कश्मीरियों की मंशा भांपकर अपने घर लौट आया था, लेकिन राशिद नहीं लौटा। परिजनों ने इसके बाद राशिद को काफी तलाश किया, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं लग सका। परिजनाें की मानें तो जाने के करीब एक साल के बाद राशिद ने पश्चिम बंगाल के बांग्लादेश की सीमा से सटे एक डाकखाने से 8 हजार रुपये का मनी आर्डर भेजा था, जिसके बाद परिजनों को राशिद के मिलने की एक बार फिर से उम्मीद जगी। इसी उम्मीद में राशिद के पिता ने बांग्लादेश की सीमा से सटे उस डाकखाने भी पहुंचे और राशिद के बारे में पता किया, लेकिन वहां से भी उसका कुछ पता नहीं चल सका।
गजब: महंगाई के दौर में भी यह उद्योग कर रहा दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की बता दें कि कश्मीरियों के साथ अमरोहा के संबंध पहले से जुड़ते रहे हैं। जिले के ढबारसी में कश्मीरी युवक एक साल तक अवैध रूप रहे, लेकिन खुफिया तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लगी थी। बता दें कि इसके बाद कश्मीरी युवकों ने संभल को भी अपना ठिकाना बनाया है। संभल के कई मदरसों में कश्मीरी युवक रहे हैं।