मुरादाबाद

करिए इन बेटियों को सलाम,बना दिया दिव्यांगों के लिए जादुई चश्मा

छात्राओं ने शोध करके एक ऐसा अनूठा स्मार्ट चश्मा तैयार किया है। जो दिव्यांगों की आंखों के साथ साथ हाथ का काम भी करेगा

मुरादाबादMay 04, 2018 / 08:00 pm

jai prakash

जय प्रकाश,मुरादाबाद: कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। जी हां इसी को चरितार्थ किया है मुरादाबाद के प्राइवेट इंजीनियरिंग एमआईटी की छात्राओं ने। यहां इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की तीन छात्राओं ने शोध करके एक ऐसा अनूठा स्मार्ट चश्मा तैयार किया है। जो दिव्यांगों की आंखों के साथ साथ हाथ का काम भी करेगा। यह चश्मा शारीरिक अक्षमता के चलते हाथ और पैर नहीं चला पाने वालों की सोच को कंप्यूटर स्क्रीन पर उतार देगा। इस अनूठे चश्मे की खोज करने वाली छात्राओं का दावा है कि दिव्यांगजनों के लिए अभी तक बने उपकरणों में कहीं न कहीं हाथ या पैर टच करना पड़ता है। चाहे वह कंप्यूटर ही क्यों न हो, लेकिन इसमें इसकी जरूरत नहीं होगी। चश्मा उनके लिए ज्यादा उपयोगी होगा, जिनके गर्दन से नीचे का हिस्सा मूवमेंट में नहीं हैं। मन मस्तिष्क के इशारों को समझकर कंप्यूटर काम करेगा।

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इस तरह काम करेगा चश्मा

इस चश्मे को ब्लूटूथ के जरिये कंप्यूटर से कनेक्ट किया जाएगा। चश्मे में ऐक्सेलेरोमीटर सेंसर का उपयोग किया गया है। इससे दिव्यांग जिस तरफ अपना चेहरा करेगा, उस दिशा को ऐक्सेलेरोमीटर सेंस करके कम्प्यूटर के कर्सर को मूव करा देगा। यह डाटा सेंस होने के बाद माइक्रो कंट्रोलर चिप को संदेश भेजेगा। चिप इस डाटा को कम्प्यूटर स्क्रीन पर दर्शाएगा। इससे कंप्यूटर पर पूरा काम किया जा सकेगा। इसके जरिये कम्प्यूटर को टच करने की जरूरत नहीं होगी। इसमें माइक वायस रिकग्निशन सिस्टम भी लगा है, जिसकी मदद से किसी भी फोल्डर का चयन कर उसे खोल या बंद किया जा सकेगा। यह सेंसर फूंक के मुताबिक काम करेगा।
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जीपीएस सिस्टम से लैस है चश्मा
चश्मा यदि खो जाता है, तो आसानी से मिल भी जाएगा। इसमें ढूढंने की अतिरिक्त सुविधा उपलब्ध है। जीपीएस सिस्टम से लैस चश्मे का एसपीआरओ एप के जरिये पता लगाया जा सकता है। जीपीएस सिस्टम के जरिये एप से कनेक्ट होते ही चश्मे में बर्जर बजेगा, जिसकी मदद से उसे आसानी से खोजा जा सकता है।
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डिजीटल इंडिया को साकार कर रहा है चश्मा
ये अनूठा चश्मा मुरादाबाद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) की तीन छात्राओं स्वप्निल पाठक, ऋषिका गुप्ता और फाल्गुनी भारद्वाज के शोध का परिणाम है। तीनों को गाइड करने वाले एमआइटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पंकज शर्मा ने बताया कि प्रोजेक्ट डिजिटल इंडिया के तहत बनाया गया है। दिव्यांगो को समाज में उनका सही स्थान दिलवाने के लिए तैयार किया गया है। विभागाध्यक्ष डॉ. फारूख हुसैन ने बताया कि इस शोध को प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर शेयर किया गया है।
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चश्मा बनाने का ख्याल तीनों छात्राओं को मूवी द बोन कलेक्‍टर देखकर आया। मूवी में देखा कि मरीज मुंह चला रहा था। किसी दूसरे की मदद ले रहा था। विचार आया कि ऐसा कुछ बने जिससे बिना किसी की मदद लिए कंप्यूटर पर काम किया जा सके। इसके बाद कुछ नया करने का विचार आया।
गूगल से ढूंढा हल्का सेंसर

गूगल पर सर्च करने के बाद पता चला कि सबसे हल्का सेंसर एडीएक्सएल 335 है, जिसके डायेरेक्शन में सेंस अंकित होता है। यह सबसे छोटा होता है और चश्मे में आसानी से फिट हो सकता है। कम कीमत है और अलग से दिखता भी नहीं है। चेहरे के मूवमेंट पर कर्सर को मूव कर सकेगा, जिससे आसानी से काम होगा।
घर में आ सकता है काम

चिकित्सा क्षेत्र के अलावा इस चश्मे को घर में उपयोग किया जा सकता है। क्लोज ऑपरेशन हो सकते हैं। साउंड सेंसर से गेम आसानी से खेले जा सकते हैं।
 

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