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दरअसल दिल्ली सरकार ने फरवरी 2023 में ओला-उबर और रैपिडो जैसी कैब एग्रीगेटर कंपनियों की बाइक सर्विस पर रोक लगाई थी। इस प्रकरण में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए पॉलिसी आने तक कंपनियों को बाइक सर्विस की इजाजत दी थी। सुप्रीम कोर्ट में दो अलग याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। ये याचिकाएं दिल्ली में आप आदमी पार्टी की सरकार के 26 मई के हाई कोर्ट के ऑर्डर को चुनौती देने वाली थी। पिछले सप्ताह कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस बारे में जवाब मांगा था। दिल्ली सरकार ने पिछले महीने मोटर व्हीकल एग्रीगेटर स्कीम को स्वीकृति दी थी। इसमें राजधानी में कैब एग्रीगेटर्स और डिलीवरी सर्विस प्रोवाइडर्स को रेगुलेट किया गया था। इसी मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस और राजेश बिंदल की वैकेशन बेंच ने हाई कोर्ट के ऑर्डर पर रोक लगाई थी।
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अपनी अपनी दलीलें
सुनवाई के दौरान उबर की ओर से कहा गया कि 2019 से कई राज्यों में दो पहिया वाहनों का इस्तेमाल बाइक सर्विस के लिए किया जा रहा है। मोटर व्हीकल ऐक्ट के तहत इस पर कोई रोक नहीं है। उबर के वकील ने कहा कि केंद्र सरकार के एक नोटिफिकेशन के अनुसार दो पहिया वाहन का इस्तेमाल कॉमर्शियल उपयोग के लिए किया जा सकता है। कंपनी थर्ड पार्टी इंश्योरेंस देती है, 35000 से ज़्यादा ड्राइवर है उनकी आजीविका इस पर निर्भर है।
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दिल्ली सरकार ने किया विरोध
दिल्ली सरकार के वकील ने ओला की दलील का विरोध करते हुए कहा वह इसको लेकर पॉलीसी बना रहे है, जब तक उनको लाइसेंस नहीं मिल जाता है वह बाइक सर्विस को जारी नहीं रख सकते। पॉलिसी बनते ही इनको तत्काल लाइसेंस दिया जाएगा। सरकार ने कहा कि 31 जुलाई तक पॉलीसी तैयार हो जाएगी। सरकार ने यह भी दलील दी थी कि बाइक टैक्सी शहर के कानूनों का उल्लंघन करती हैं क्योंकि उनके पास इस सर्विस के लिए लाइसेंस नहीं है।