यह संस्था युद्ध के दौरान लापता हुए सैनिकों की पूरी जानकारी रखती है, जिससे शांतिकाल में यानी युद्ध खत्म होने के बाद उन्हें या उनके अवशेषों को खोजा जा सके। यह संस्था अमरीकी रक्षा विभाग के तहत काम करती है और इस संस्था के अंतर्गत कई और संस्थाएं आती हैं। ये सभी मिलकर दूसरे विश्वयुद्ध, कोरिया से हुए युद्ध और वियतनाम युद्ध के अलावा शीत युद्ध और इराक में अशांति के दौरन भेजे गए सैनिक में से लापता हुए सैनिकों की तलाश करती है। यही नहीं, यह संस्था खोए हुए सैनिकों के परिवार के संपर्क में भी रहती है, जिससे कोई भी सुराग मिले तो खोज को आगे बढ़ाया जा सके। अमरीकी रक्षा विभाग वर्तमान में करीब 82 हजार सैनिकों की तलाश कर रहा है।
भारत में अपने लापता हुए चार सैनिकों की तलाश के लिए अमरीकी रक्षा विभाग ने पूरी योजना बना रखी है। लापता सैनिकों की तलाश पूर्वोत्तर इलाके से शुरू होगी और 8 बार वहां अभियान चलाया जाएगा। हालांकि, इससे पहले वर्ष 2008 में अरुणाचल प्रदेश, असम, नगालैंड और त्रिपुरा में यह अभियान चलाया गया था।
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6 सैनिकों के अवशेष मिले, 306 के बारे में कयासवैसे, लापता सैनिकों की तलाशी अभियान यूं ही नहीं हो रहा। इससे पहले 6 सैनिकों के अवशेष अमरीका को भारत से मिल चुके हैं। वर्ष 2016 में खोज अभियान के दौरान अमरीकी सैनिकों का सुराग मिला था। फिलहाल 306 और सैनिकों के बारे सुराग मिल रहे हैं कि भारत के ही किसी क्षेत्र में इनकी मौत हुई होगी। यह संख्या बढ़ भी सकती है। अमरीकी संस्था की यह खोज भारत के साथ-साथ उन सभी देशों में चलती है, जहां युद्ध हुए थे। यह संस्था सबसे पहले उस देश से संपर्क करती है, जहां सैनिक युद्ध के लिए गए थे। इसके बाद अभियान की पूरी जानकारी देकर वहां के मौसम और कई प्रमुख बातों का ध्यान रखते हुए तलाशी अभियान की योजना तैयार होती है।
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सुराग मिलने पर पूरी जगह खाली करा दी जाती हैतलाशी अभियान की योजना पूरी होने के बाद अमरीका से रिसर्च एंड इन्वेस्टिगेशन टीम आती है। यह टीम संबंबधित जगहों पर जाकर प्राथमिक जांच करती है और स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर सुराग जुटाती है। उसके बाद फोरेंसिक टीम उन जगहों पर जाती है। सुराग मिलने पर जगह को खाली करा दिया जाता है और गहन जांच-पड़ताल होती है। जो अवशेष मिलते हैं, उन्हें लैब भेजा जाता है, जिससे यह तय हो सके कि अवशेष लापता अमरीकी सैनिक का ही है।