पालतू जानवरों के साथ यूरोप आए थे यामनाया
1600 से अधिक जीनोम के शोध में पता चला कि उत्तरी यूरोप में होने वाली मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) बीमारी का आनुवांशिक संबंध प्राचीन चरवाहों के समूह के वंश से जुड़ा है, जो लगभग 5 हजार वर्ष पहले पालतू जानवरों के साथ यूरोप में आए। ये अपने साथ पशुजन्य बीमारियों का वैरिएंट भी ले आए। इन चरवाहों को यामनाया के नाम से जाना जाता था। विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि यमनाया के कारण ही वर्तमान में उत्तरी यूरोप में चरवाहों का वंश बढ़ा। इसी वजह से यूरोप में इस बीमारी से सबसे ज्यादा पीडि़त हैं। इसमें दृष्टि, हाथ-पैर में संवेदना और संतुलन जैसी समस्याएं होती हैं। कैंब्रिज विवि के प्राणीशास्त्र विभाग के शोधकर्ता विलियन बैरी के मुताबिक, इन नतीजों ने एमएस और अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों के बारे में समझ को बढ़ा सकता है। यह शोध दर्शाता है कि हमारे पूर्वजों की जीवनशैली ने आधुनिक बीमारी के जोखिम को कैसे प्रभावित किया। बैरी ने यह भी बताया कि उत्तरपूर्व यूरोप में शिकारियों का डीएनए उच्च स्तर पर मौजूद है, जिससे क्षेत्र में अल्जाइमर रोग का भी आनुवांशिक जोखिम ज्यादा है।
1600 से अधिक जीनोम के शोध में पता चला कि उत्तरी यूरोप में होने वाली मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) बीमारी का आनुवांशिक संबंध प्राचीन चरवाहों के समूह के वंश से जुड़ा है, जो लगभग 5 हजार वर्ष पहले पालतू जानवरों के साथ यूरोप में आए। ये अपने साथ पशुजन्य बीमारियों का वैरिएंट भी ले आए। इन चरवाहों को यामनाया के नाम से जाना जाता था। विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि यमनाया के कारण ही वर्तमान में उत्तरी यूरोप में चरवाहों का वंश बढ़ा। इसी वजह से यूरोप में इस बीमारी से सबसे ज्यादा पीडि़त हैं। इसमें दृष्टि, हाथ-पैर में संवेदना और संतुलन जैसी समस्याएं होती हैं। कैंब्रिज विवि के प्राणीशास्त्र विभाग के शोधकर्ता विलियन बैरी के मुताबिक, इन नतीजों ने एमएस और अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों के बारे में समझ को बढ़ा सकता है। यह शोध दर्शाता है कि हमारे पूर्वजों की जीवनशैली ने आधुनिक बीमारी के जोखिम को कैसे प्रभावित किया। बैरी ने यह भी बताया कि उत्तरपूर्व यूरोप में शिकारियों का डीएनए उच्च स्तर पर मौजूद है, जिससे क्षेत्र में अल्जाइमर रोग का भी आनुवांशिक जोखिम ज्यादा है।