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पिछले साल 7 जुलाई को शुरू हुआ था सफरचीन ने इस अभियान की शुरुआत काफी पहले कर दी थी, मगर इसका असली सफर पिछले साल जुलाई में तब शुरू हुआ, जब मंगल अभियान को प्रक्षेपित किया गया। इस अभियान में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर एक साथ मंगल ग्रह पर भेजे गए थे। हाल ही में यह रोवर मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक उतर चुका है। रोवर के मंगल ग्रह पर उतरते ही चीन ऐसा करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। यह रोवर अब वहां मंगल के वायुमंडलीय और भूगर्भीय परिस्थितियों की तस्वीरें सीधे चीन को भेज रहा है।
उल्लेखनीय है कि ज्यूरोंग रोवर मंगल के उत्तरी गोलाद्र्ध के विस्तृत मैदान यूटोपिया प्लेनिटा पर उतरा है। चीन के इस अभियान में उसका उद्देश्य उस समयावधि पर है, जो मंगल ग्रह के पृथ्वी के करीब होने से जुड़ी है। यह स्थिति प्रत्येक दो साल में एक बार होती है। चीन के वैज्ञानिक अगले करीब डेढ़ महीने तक मंगल के भूगर्भीय अध्ययन पर फोकस करेंगे।
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सतह पर उतर गया, मगर लैंडर से अलग नहीं हुआ हैआपको यह भी बता दें कि ज्यूरोंग रोवर अभी लैंडर से अलग नहीं हो रहा। यह रोवर लैंडर के साथ पहले यूटोपिया प्लेनिटा मैदान का अध्ययन करेगा। अभियान के लिए उचित समय और अध्ययन के लिए सही जगह देखकर वैज्ञानिक दोनों को अलग करेंगे। वैज्ञानिक चाहते हैं कि रोवर को उस जगह लैंडर से अलग किया जाए, जहां जमीन समतल हो। पथरीली जमीन से अभियान में परेशानी हो सकती है। चीन का यह ज्यूरोंग नामक रोवर लैंडर से अलग होने के बाद अमरीकी रोवर पर्सिवियरेंस और क्यूरोसिटी रोवर के साथ मिलकर इस लाल ग्रह के विस्तृत परीक्षण में मदद करेगा।
मीडिया रिपोर्टों पर गौर करें तो ज्यूरोंग रोवर का वजन महज 240 ग्राम है। हालांकि, यह नासा के स्पिरिट और अपॉच्र्युनिटी रोवर से थोड़ा भारी है, मगर पर्सिवियरेंस और क्यूरोसिटी रोवर के भार का एक चौथाई है। एक खास बात और ज्यूरोंग में पावरफुल रिटर्निंग पैनल लगे हैं, जिससे यह आसानी से वापस खींचा जा सकेगा। इसमें सात उपकरण हैं, जिनमें कैमरा, सतह की गहराई में देख सकने वाला रडार, चुंबकीय क्षेत्र वाला डिटेक्टर और मौसम स्टेशन शामिल है। ज्यूरोंग रोवर में लगा रडार मंगल की सतह के नीचे पहले के जीवन के संकेतों के साथ-साथ वहां मौजूद तरल पदार्थों की तलाश भी कर सकता है।
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लैंडर जहां उतरा वह जगह सबसे चुनौतीपूर्णगौरतलब है कि मंगल ग्रह पर लैंडर और रोवर को उतारना आसान काम नहीं है। यह सौरमंडल का सबसे चुनौतीपूर्ण लैंडिंग वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इससे पहले चीन के ही तियानवेन-1 यान ने करीब तीन महीने तक मंगल ग्रह के चक्कर लगाए थे। बाद में रोवर उससे अलग हुआ और मंगल की सतह पर नीचे आया। यही नहीं, 1976 में नासा का वाइकिंग-2 यान इस क्षेत्र में उतरा था।
चीन में अंतरिक्ष और सौरमंडल पर गहन नजर रखने तथा इसकी रिपोर्टिंग करने वाली न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की मानें मंगल ग्रह पर वायुमंडल से होकर नीचे आते समय करीब 9 मिनट काफी भयावह थे। नीचे आते समय शुरुआत में ज्यूरोंग रोवर एक एरोशेल से ढंका था। कैप्सूल की स्पीड तब कम होने लगी, जब रोवर मंगल के वायुमंडल में प्रवेश करने लगा। पैराशूट खुलने के बाद उसकी स्पीड और कम हुई। इसके कुछ देर बाद सिन्हुआ ने ऐलान किया कि चीन ने मंगल ग्रह पर अपना निशान छोडऩे में सफलता हासिल कर ली है और यह इस अभियान की सफलता का शुरुआती या कहें पहला कदम है।
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चीन का यह रोवर मंगल ग्रह पर करेगा क्याबहरहाल, अगले कुछ दिनों में लैंडर से अलग होने के बाद ज्यूरोंग रोवर मंगल ग्रह की सतह पर चहलकदमी करने लगा तो चीन दुनिया का पहला ऐसा देश होगा, जिसने एक ही अभियान में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर तीनों को स्थापित किया। बता दें कि ज्यूरोंग रोवर कैमरे की मदद से मंगल ग्रह की चट्टानों की तस्वीर लेगा। इनके माध्यम से इस ग्रह पर खनिजों की जानकारी हासिल हो सकेगी। साथ ही, इस रोवर में एक स्पेक्ट्रोमीटर भी लगा है और यह लेजर आधारित तकनीक है। यह चट्टानों को भी काट सकता है।
यहां यह जानना जरूरी है कि चीन की ओर मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष यान को भेजना पहली बार नहीं था। लगभग दस साल पहले चीन ने यिंगहुओ रोवर को मंगल ग्रह पर उतारने का प्रयास किया था। तब इसे रूस के रॉकेट की मदद से भेजा गया था, मगर यह अभियान सफल नहीं हुआ। पृथ्वी के वायुमंडल में ही यिंगहुआ यान में आग लग गई थी, जिसमें जलकर वह पूरी तरह नष्ट हो गया था।