उन्होंने कहा, “हम विक्रम लैंडर की लैंडिंग के लिए प्रौद्योगिकी प्रदर्शित करना चाहते हैं। इससे जहां देशभर में लोगों एक बार फिर नई उम्मीद जागी है, वहीं मिशन मून से जुड़े तमाम किस्सों और उनसे जुड़ी घटनाओं की भी चर्चा चल निकली है।
आपको बता दें कि आज से 50 साल पहले नासा का अपोलो 11 मिशन दो इंसानों को लेकर चांद पर पहुंचा था।
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गौरतलब है कि अपोलो मिशन की सबसे बड़ी खूबी उसकी वह यादगार तस्वीर है, जिसमें एक अंतरिक्ष यात्री चांद पर अमरीकी झंडा फहराते हुए नजर आ रहा है।
दरअसल, अपोलो प्रोग्राम दौरान अमरीकी झंडा अंतरिक्ष में ले जाने का कोई प्लान नहीं था। क्योंकि नासा संयुक्त राष्ट्र का झंडा चांद पर ले जाने की इच्छुक था।
अपोलो 11 मिशन लॉन्चिंग के 3 माह पहले चांद पर अमरीकी झंडा फहराने का फैसला लिया गया। जिसके बाद नासा ने सरकारी कंपनी से 5.50 डॉलर की कीमत से नाइलॉन के बने झंडे को डिजायन कराया।
इस झंडे को कुछ इस तरह से डिजायन कराया गया था, ताकि चांद पर लगाने में कोई परेशानी न आए।
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वैज्ञानिकों के सामने अब बड़ी समस्या यह थी कि आखिर झंडे और उसके डंडे को स्पेसक्राफ्ट में फिट कैसे किया जाए? अब चूंकि चांद पर झंडा ले जाने का फैसला काफी बाद में लिया गया था।
इसलिए यान में उसके लिए जगह शेष नहीं बची थी। ऐसे में उसको लूनर लैंडर की सीढ़ी से लगाकर अंतरिक्ष में भेजा गया। इसके लिए नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज़ एल्ड्रिन ने धरती पर झंडा लगाने का अभ्यास किया।
लेकिन, जब उन्होंने चांद पर झंडा लगाने का प्रयास किया तो वह सिकुड़ा ही रह गया। तब लोगों ने यह आरोप लगाया कि चांद पर हवा नहीं तो झंडा लहराता हुआ कैसे दिखाई दे रहा है।
मिशन के बाद एल्ड्रिन ने बताया कि झंडा गिर गया। हालांकि इसके बाद अन्य मून मिशन से जुड़े झंडे चांद पर अभी भी मौजूद हैं।
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