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पाकिस्तान को सबक
दरअसल, आतंकवाद को लेकर मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने की कोशिश की, लेकिन जब पाकिस्तान ने धोखा दिया और उरी व पठानकोट से हमले को अंजाम दिया। जिसके बाद मोदी सरकार ने द्विपक्षीय वार्ता बंद कर दी। 2016 में हुए उरी हमले के बाद पाकिस्तान में आयोजित SAARC सम्मेलन का भी बहिष्कार किया। सबसे महत्वपूर्ण रहा कि सार्क के बाकी देशों ने भी भारत का साथ दिया और सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया। इससे पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया। अब बिम्सटेक देशों के जरिए एक बार फिर से पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की कोशिश है। इसके पीछे एक और कारण है कि बिम्सटेक में पाकिस्तान शामिल नहीं है, लिहाजा सार्क के बदले बिम्सटेक को मजबूत कर नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहते हैं। बता दें कि BIMSTEC का गठन 1997 में किया गया था। बिम्सटेक में सार्क के तीन देश (पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) शामिल नहीं है। सबसे बड़ी बात की इन तीनों देशों में से अफगानिस्तान के साथ भारत के रिश्ते बहुत अच्छे हैं। अब ऐसा माना जा रहा है कि मोदी दूसरे कार्यकाल के पहले विदेश दौरे पर मालदीव जाएंगे और रिश्ता मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
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चीन के सामने मजबूत भारत का पक्ष
नरेंद्र मोदी अब अपनी इस रणनीति से चीन को भी एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं कि भारत अब पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है। दक्षिण एशिया में अपनी ताकत आजमाने और पैठ बनाने को बेकरार चीन के सामने भारत ने अपना दावा पेश कर दिया है। डोकलाम विवाद के बाद भले ही चीन को यह एहसास हो गया हो कि भारत बदल चुका है, लेकिन अब पहले से ज्यादा मजबूती के साथ शपथ लेने जा रहे मोदी चीन को यह इशारों-इशारों में कहना चाहते हैं कि भारत बदल चुका है। चूंकि चीन ने भारत को घेरने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे प्रॉजेक्ट में सार्क व बिम्सटेक देशों को (भूटान व भारत को छोड़कर) अपने साथ जोड़ लिया है, हालांकि भारत ने हमेशा इसका विरोध किया है। अब बिम्सटेक के जरिए ही मोदी चीन को पछाड़ना चाहते हैं। इसलिए शपथग्रहण में बिम्सटेक देशों को आमंत्रित कर पाकिस्तान व चीन को एक संकेत तो दे दिया गया है।
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