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कश्मीर विवाद पर डोनाल्ड ट्रंप के बयान का सच, ..तो इसलिए कही मध्यस्थता की बात

Trump-Imran Meeting: डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वे कश्मीर विवाद पर मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं
भारत ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान का खंड़न करते हुए कहा कि तीसरे पक्ष की मध्यस्थता मंजूर नहीं है

Jul 24, 2019 / 02:31 pm

Anil Kumar

नई दिल्ली। कश्मीर विवाद को लेकर सोमवार को वाइट हाउस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा और विवादित बयान दिया। इस बयान के बाद भारत में सियासी संग्राम शुरू हो गया।

ट्रंप ने कहा कि वह कश्मीर विवाद पर भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। उन्होंने इमरान खान के आग्रह पर कहा कि दो हफ्ते पहले भारत के प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हुई थी, उस समय मोदी ने भी कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए आग्रह किया था। यदि मैं कश्मीर विवाद को सुलझाने में मदद कर सकता हूं तो जरूर मध्यस्थता करना चाहूंगा।

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अब सवाल उठता है कि 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रति जो रूख अपनाया था वह कुछ ठीक नहीं था। लेकिन अब जब पहली बार आधिकारिक दौरे पर अमरीका पहुंचे पीएम इमरान खान के साथ ट्रंप ने ऐसी बातें क्यों कही?

आखिर ऐसी बातें क्यों कही जिससे भारत-अमरीका संबंधों में दूरियां बढ़ने की संभावना हो? इसके पीछे कई कारण हैं..

2020 में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव

दरअसल, 2020 में अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में चुनाव से पहले ट्रंप कुछ ऐसा करते हुए खुद को दिखाना चाहते हों जिससे की चुनाव में वे उस मुद्दे को भुना सकते हैं।

अपने दूसरे कार्यकाल के लिए दावेदारी पेश करने से पहले ट्रंप इस बात को सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनकी जीत पक्की कैसे हो सकती है। लिहाजा हर उस तरीके को आजमा रहे हैं जिससे वह मजबूत स्थिति में रहे।

यह कोई पहला ऐसा मामला नहीं है जिसको लेकर ट्रंप ने झूठ बोला। ट्रंप के नाम झूठ बोलने का एक रिकॉर्ड बन गया है।अमरीका के वाशिंगटन पोस्ट ने इस साल की शुरुआत में एक रिपोर्ट साझा किया था, जिसमें दावा किया गया कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक दिन में 17 झूठे वादे और भ्रामक प्रचार करते हैं।

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रिपोर्ट में ट्रंप के बीते दो सालों के कार्यकाल में बोले गए झूठा का भी हिसाब था। इसके मुताबिक ट्रंप ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में अब तक 8,158 बार झूठे और गुमराह करने वाले वादे कर चुके हैं।

इस लिहाज से देखा जाए तो ट्रंप ने अपने फायदे के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नाम का सहारा लिया और इमरान खान के सामने पेश कर दिया।

अमरीकी सैनिक

दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती ताकत

1999 में भारत और पाकिस्तान के परमाणु संपन्न होने के एक साल बाद कश्मीर में छिड़ा कारगिल युद्ध अमेरीकी हस्तक्षेप के बाद था समाप्त हुआ। हालांकि नवाज शरीफ की सरकार ने तत्काली राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए आग्रह किया था, लेकिन तब भी क्लिंटन ने कश्मीर पर मध्यस्थता का करने से मना कर दिया था।

तब पहली बार द्विपक्षीय लाहौर घोषणा जारी किया गया जिसमें कहा गया कि कश्मीर विवाद समेत अन्य मुद्दों को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान के लिए द्विपक्षीय वार्ता सबसे अच्छा तरीका है।

तब से लेकर अबतक भारत-अमरीका के संबंधों में परिवर्तन भी आया है और भारत लगातार दक्षिण एशिया में एक मजबूत देश के तौर पर उभरता जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि दक्षिण एशिया में अमरीका अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है और इसके लिए भारत के साथ सहयोग की जरूरत है।

चूंकि इस क्षेत्र में चीन का भी काफी प्रभाव है। चीन और अमरीका के बीच संबंधों में दूरियां बढ़ती जा रही है। इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत का हस्तक्षेप अधिक है, जबकि दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए भौगोलिक तौर पर अफगानिस्तान काफी महत्वपूर्ण है। लिहाजा पाकिस्तान ही एक ऐसा देश बचा है, जिसके साथ मिलकर अमरीका भारत को कमजोर कर सकता है।

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पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान और भारत के संबंध अच्छे नहीं है, जबकि चीन पाकिस्तान का हिमायती रहा है। यदि अफगानिस्तान में भारत कमजोर पड़ता है तो इसका सीधा फायदा अमरीका को होगा। 2001 से अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों की वापसी की भी घोषणा ट्रंप ने की है।

अब यदि ऐसा होता है तो ट्रंप दुनिया के सामने यह कह सकते हैं और आगामी अमरीकी चुनाव में यह बता सकते हैं कि वर्षों से चल रहे संघर्ष को समाप्त किया है। अमरीका को नुकसान से बचाया है।

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