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कहीं इराक न बन जाए ईरान, दूसरे गल्फ वॉर की ओर बढ़ा अमरीका!

2003 में शुरू हुआ युद्ध आज भी इराक में कायम है
2011 में यहां पर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट का उदय हुआ
अमरीका ने इराक पर सिर्फ उसके तेल भंडार पर कब्जा जमाने के लिए हमला किया

May 15, 2019 / 08:21 am

Mohit Saxena

कहीं इराक न बन जाए ईरान, दूसरे गल्फ वॉर की ओर बढ़ा अमरीका!

नई दिल्ली। वह 1990 का वर्ष था जब अचानक अमरीका सहित 34 संयुक्त सेनाओं ने इराक के खिलाफ गल्फ वॉर छेड़ दिया था। इराक ने कुवैत पर आक्रमण करके उस पर कब्जा जमा लिया था। इसके विरोध में अमरीका की अगुवाई में यह युद्ध करीब एक साल तक चला। इसके बाद वर्ष 2003 में इराक वॉर छिड़ गई थी। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद अमरीका ने इराक पर जबरदस्त कार्रवाई की। उसने हमले के पीछे इराक पर कई बेबुनियाद आरोप लगाए। 2003 में शुरू हुआ यह युद्ध आज भी खत्म नहीं हुआ।इसके बाद 2011 में यहां पर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) का उदय हुआ। जिसने यहां के हालात को और भी बदतर बना दिया। पीछे पलट कर देखें तो पता चलता है कि इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन के बाद आज तक इस देश में स्थिरता नहीं आ पाई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमरीका ने इराक पर सिर्फ उसके तेल भंडार पर कब्जा जमाने के लिए हमला किया था, बाकि सारे कारण बहाना थे।उस दौरान अमरीका ने इराक में परमाणु हथियारों के होने की आशंका भी जाहिर की थी, जो आज तक नहीं मिले हैं। अब ईरान के ताजा हालात पर नजर डाले तो सब कुछ वैसी ही परिस्थितियां हैं, जैसे पहले इराक के साथ थी। गौरतलब है कि ईरान के साथ परमाणु समझौता तोड़ने के बाद अमरीका काफी सख्त है और अब ईरान ने भी कह दिया है कि यदि उनके साथ परमाणु समझौते में शामिल पश्चिमी देशों ने नियमों को तोड़ने की कोशिश की तो इसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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मध्य-पूर्व में अमरीकी सैनिकों की भारी तैनाती

बीते गुरुवार को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शीर्ष के अधिकारियों के साथ चर्चा हुई थी। कार्यकारी रक्षा मंत्री पैट्रिक शैनहन ने मध्य-पूर्व में अमरीकी सेना की योजना को पेश किया था। मध्य-पूर्व में अमरीका बड़ी संख्या में सैनिक भेजने पर विचार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमरीका यहां पर करीब एक लाख 20 हज़ार सैनिक भेजने की तैयारी कर रहा है। यह संख्या 2003 में अमरीका ने जब इराक़ पर हमला किया था, उसी के बराबर है।
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अमरीका अब कड़ा रुख अपना रहा

ईरान के विरोध में अमरीका अब कड़ा रुख अपना रहा है। पहले ईरान से भारत को तेल ख़रीदने पर प्रतिबंधों में छूट दे रखी थी। अब उसने अपने प्रतिबंधों को और कड़ा कर दिया है। इसके कारण एक मई को यह छूट खत्म कर दी। इस संकट के बीच ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ सोमवार की देर रात नई दिल्ली पहुंचे हैं। जरीफ ने भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाक़ात करी। दरअसल ईरान के अंदर छटपटाहट है कि कहीं वह दुनिया में अलग-थलग न पड़ जाए। ईरान चाहता है कि भारत उसके समर्थन में रहे और अमरीका से इसे बारे में चर्चा करे।
संकट की स्थिति में ईरान की उम्मीद चीन और भारत

संकट की घड़ी में ईरान चीन और भारत की तरफ देखता है। मगर इस बार सब कुछ बहुत आसान नहीं है। चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप प्रशासन ने पहले से ही ट्रेड वॉर छेड़ रखा है। ईरान में लगातार बदतर स्थिति होती जा रही है। ईरान की मुद्रा रियाल इतिहास के सबसे निचले स्तर पर है। एक डॉलर के बदले एक लाख से ज़्यादा रियाल देने पड़ रहे हैं।
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ईरान के लिए भी अमरीका ने योजना बनाई

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र में ईरान के पूर्व राजदूत अली ख़ुर्रम के बयान को एक अखबार ने छापा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि जिस तरह अमरीका ने इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार को उखाड़ फेंका, उसी तरह से ईरान के लिए भी अमरीका ने योजना बनाई है। अमरीका ने इराक में यह काम तीन स्तरों पर किया था और ईरान में भी वैसा ही करने वाला है। पहले प्रतिबंध लगाएगा, फिर तेल और गैस के आयात को पूरी तरह से बाधित करेगा और आख़िर में सैन्य कार्रवाई करेगा।
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