दरअसल, चीन के स्पेसक्राफ्ट ने बीते 3 जनवरी 2019 को चंद्रमा की सुदूर सतह पर लैंडिंग की थी और एक इतिहास रचा था। यह किसी देश द्वारा चंद्रमा के इस हिस्से पर भेजा गया पहला स्पेसक्राफ्ट था। इस स्पेसक्राफ्ट के पेलोड के एक 2.6 किलोग्राम का छोटा सा पृथ्वी की तरह का वातावरण भी है, जिसे लूनर माइक्रो इकोसिस्टम (एलएमई) कहा जाता है।
चंद्रयान 2 को लेकर इसरो ने अचानक दी बड़ी खुखबरी, मिल गई यह बड़ी कामयाबी पूरी तरह से सील इस सिलिंडर के आकार वाले एलएमई की लंबाई केवल 18 सेंटीमीटर और परिधि 16 सेंटीमीटर है। इस एलएमई के भीतर जीवन के प्रकार वाली छह चीजे हैं, जो पूरी तरह पृथ्वी की तरह वाले माहौल में हैं। बस इनमें माइक्रो-ग्रैविटी और रेडिएशन नहीं है।
लैंडर विक्रम से संपर्क के लिए इसरो ने तैयार किया यंत्र, कभी भी मिल सकती है बड़ी खुशखबरी चंद्रमा पर इसरो को मिली इतनी कीमती चीज, देखकर सब झूम उठे एलएमई के भीतर कपास के बीज, आलू के बीज, सफेद सरसों के बीज, यीस्ट, फल पर लगने वाले कीड़े के अंडे (फ्रूट फ्लाई एग्स), खरपतवार जैसे छह बीज शामिल हैं।
चीन द्वारा किया गया यह अभूतपूर्व कार्य चंद्रमा पर किसी जैविकीय विकास वाला पहला प्रयोग है। हालांकि इन सभी के बीच केवल कपास के बीजों ने ही अच्छे परिणाम दिखाए हैं।
विक्रम लैंडर के साथ हुई दिक्कत की होगी जांच, राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठनः के सिवन चीन के लैंडर के भीतर यह प्रयोग जनवरी 2019 में किया गया था, जब लैंडर चंद्रमा पर पहुंचा था। उस वक्त इस प्रयोग को अंजाम देने वाली टीम ने सोचा था कि यह केवल एक पत्ती (कपास की पत्ती) भर है, लेकिन अब डाटा दिखाता है कि वहां दो पत्तियां हैं।
इसकी तस्वीर को इमेज प्रोसेसिंग और डाटा एनालिसिस के आधार पर 3D रूप में तैयार किया गया और इसमें स्पष्ट रूप से नजर आता है कि वहां पर दो पत्तियां उगी हैं। हालांकि छह में से बाकी पांच ने किसी तरह के सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाए हैं।
चंद्रयान-2: मिशन मून में विक्रम लैंडर के खराब होने के पीछे के कारण इस एलएमई को गर्म रखने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। इसलिए पहले लूनर डे (पृथ्वी के करीब 14 दिनों के बराबर) के बाद कपास का अंकुर नष्ट हो गया, क्योंकि वहां का तापमान माइनस 190 डिग्री सेल्सियस तक नीचे पहुंच गया था। लेकिन फिर भी एलएमई कितना लंबा चल सकता है यह जांचने के लिए प्रयोग जारी रहा।
चीन के इस मिशन की जब योजना बनाई जा रही थी, उस वक्त यह चर्चा की गई थी कि वहां पर एक छोटा सा कछुआ भी भेजा जाएगा, लेकिन अभियान की सीमाओं के चलते ऐसा नहीं हो सका।