इस मिशन में लगी चीन की सरकारी एजेंसियां आक्रामक रूप से विदेशों में भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। पिछले एक दशक में चीनी कंपनियों के जरिए विदेशों में खरीदी या लीज पर ली गई जमीनों का क्षेत्रफल श्रीलंका के कुल मैदानी भाग के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की महत्वाकांक्षा छोटे और विकासशील देशों पर अपना दबदबा कायम करने की है और इसे चीनी साम्राज्यवाद कहा जा रहा है।
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चीन विकासशील व गरीब देशों को बुनियादी सुविधाएं वाले प्रोजेक्ट जैसे सडक़ें, रेलवे व ब्रिज के लिए किफायती दर पर लोन मुहैया करा रहा है। चीनी कंपनियां इनमें शामिल हैं। प्रोजेक्ट को अधूरा छोडऩे के साथ ही चीन देशों पर आर्थिक दबाव भी बना रहा है।
इन देशों में ज्यादा दखल मोंटेनेग्रो: यहां 270 मील लंबे हाइवे पर चीन काम कर रहा। सरकार चीन से ब्याज पर 1 बिलियन डॉलर लोन ले चुकी है। जमीन पर कब्जे का खतरा है।
श्रीलंका: पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल के तहत चीन को 269 हेक्टेयर जमीन दी। इस जोन में चीनी श्रमिक काम करेंगे, चीन की करेंसी युआन चलेगी। म्यांमार: काचिन में केले की खेती में चीनी कंपनियां शामिल हो गई हैं। केले का निर्यात 2013 में 1.5 मिलियन डॉलर से 2020 में 370 मिलियन डॉलर हो गया।
वियतनाम: बिन्ह फुओक प्रांत रबर उत्पादन के लिए मशहूर है। अब चीनी कंपनी यहां 75 हेक्टेयर जमीन पर शूकरों के बड़े झुंड पाल रही है। केन्या: केन्या और युगांडा को रेल से जोडऩे का प्रोजेक्ट चीन ने अधूरा छोड़ा। केन्या पर चीन का 9 बिलियन डॉलर का कर्ज चढ़ा।
कृषि, जंगल व खनन के लिए भूमि खरीदी यूरोपीय भूमि निगरानी संगठन लैंड मैट्रिक्स के अनुसार चीनी कंपनियों ने 2011 से 2020 तक दुनियाभर में कृषि, जंगल व खनन के लिए 64.8 लाख हेक्टेयर भूमि पर कब्जा जमा लिया है, जो श्रीलंका के क्षेत्रफल करीब 65 लाख हेक्टेयर के बराबर है। बाहरी देशों में ब्रिटिश कंपनियों के पास 15.6 लाख, अमरीकी कंपनियों के पास 8.6 लाख और जापानी कंपनियों के पास 4.2 लाख हेक्टेयर जमीन ही है।
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सुरक्षा व प्राकृतिक संसाधनों की चिंता जापानी मीडिया निक्कोई एशिया की रिपोर्ट के अनुसार कहीं उभरते व विकासशील देशों के खाद्य व प्राकृतिक संसाधनों के स्रोत पर चीन कब्जा न कर लें। सुरक्षा की चिंता भी है। जापान के हिमेजी विवि. के प्रोफेसर हिदेकी हिरानो कहते हैं कि इन देशों को चीनी कंपनियों के भूमि कब्जे को लेकर अपने कानूनों को और अधिक कड़ा कर देना चाहिए।