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फ्रांस की पत्रिका Charlie Hebdo ने दोबारा पैगम्बर मोहम्मद के कार्टूनों को छापा, तनाव बढ़ा

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पत्रिका शार्ली एब्डो (Charlie Hebdo)के ताजा संस्करण के कवर पेज पर एक बार दोबारा से वहीं कार्टून छापे गए हैं।
2015 में हुए इस हमले में पत्रिका के प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी।

Sep 02, 2020 / 01:04 pm

Mohit Saxena

फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्डो।

पेरिस। फ्रांस (France) की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्डो (Charlie Hebdo) एक बार फिर विवादों में हैं। उसने पैगम्बर मोहम्मद के उनक कार्टूनों को दोबारा छापा है, जिसके कारण साल 2015 में उस पर हमला हुआ था। पत्रिका का कहना है कि इन कार्टूनों को दोबारा इस लिए छापा जा रहा है क्योंकि एक दिन बाद उन 14 लोगों पर मुकदमा शुरू होगा, जिन पर पत्रिका पर हमले करने वालों की मदद का आरोप है।
गौरतलब है कि शार्ली एब्डो के दफ्तर पर सात जनवरी 2015 को बड़ा आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में पत्रिका के प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी। कुछ दिन बाद पेरिस में इस मामले से जुड़े एक अन्य हमले में पांच की जान चली गई थी। इन हमलों के बाद फ्रांस में चरमपंथी हमले शुरू हो गए थे। पत्रिका के ताजा संस्करण के कवर पेज पर एक बार दोबारा से वहीं कार्टून छापे गए हैं। पैगम्बर मोहम्मद के 12 कार्टून छापे गए हैं, जिन्हें शार्ली एब्डो में प्रकाशित होने से पहले डेनमार्क के एक अखबार ने छापा था। इनमें से एक कार्टून में पैगम्बर को सिर पर बम बांधा हुआ दिखाया गया था। साथ में फ्रेंच भाषा में जो हेडलाइन लिखी गई थी, उसका अर्थ था- ‘वो सब कुछ इसके लिए ही था।’
पाकिस्तान ने किया कड़ा विरोध

पैगम्बर के कार्टून छापने को लेकर पाकिस्तान ने शार्ली एब्डो की कड़ी निंदा की है। पाक पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस संबंध में दो ट्वीट किए गए हैं। इनमें कहा गया है कि फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली एब्डो द्वारा पैगंबर मोहम्मद के बेहद आपत्तिजनक व्यंग्य चित्र फिर से छापने के फैसले की पाकिस्तान कड़ी निंदा करता है।
पत्रिका ने दिया कानून का हवाला

पत्रिका ने सम्पादकीय में लिखा है कि 2015 के हमले के बाद से ही उससे कहा जाता रहा है कि वह पैगंबर पर व्यंग्यचित्र छापना जारी रखे। उन्होंने आगे लिखा ‘हमने ऐसा करने से हमेशा इनकार किया। कानून हमें ऐसा करने की इजाजत देता है। मगर ऐसा करने के लिए कोई अच्छी वजह होनी चाहिए थी। ऐसी वजह जिसका कोई अर्थ हो और जिससे एक बहस पैदा हो। इन कार्टूनों को जनवरी 2015 के हमलों पर सुनवाई शुरू होने वाले हफ़्ते में छापना हमें ज़रूरी लगा।’

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