दरअसल, अमरीका ईरान के बाद अब रूस के साथ परमाणु समझौते से बाहर निकलना चाहता है। लिहाज इसे लेकर ट्रंप कभी भी औपचारिक घोषणा कर सकते हैं।
अमरीका ने रूस के साथ ‘इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी’ ( INF ) से औपचारिक रूप से अलग होने की तैयारी कर ली है, जिससे हथियारों को लेकर नई होड़ मचने की आशंका बढ़ गई है।
रूस ने तुर्की को दी s-400 की पहली खेप, इन खासियतों से लैस है ये मिसाइल
बता दें कि 1987 में समझौते पर राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते के मुताबिक, 500 और 5,500 किलोमीटर की दूरी के बीच मार करने वाले मिसाइलों पर प्रतिबंध है।
हालांकि इस साल के शुरुआत में अमरीका और नाटो ने रूस पर एक नए प्रकार की क्रूज मिसाइल तैनात करके समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। लेकिन रूस ने इसे सिरे से नकार दिया था।
अमरीका ने रूस पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके पास इसके प्रमाण हैं कि रूस ने 9 एम 729 मिसाइलों को तैनात किया था, जिसे एसएससी-8 के तौर पर जाना जाता है।
रूस-अमरीका में बढ़ती दूरियां
बता दें कि रूस के साथ अमरीका के संबंधों में आ रहे खटास के कई कारण हैं। हाल के दिनों में अमरीका ने कई देशों को रूसी निर्मित मिसाइल S-400 को खरीदने पर पाबंदी लगा दी है।
S-400 को लेकर अमरीका और रूस में तनाव गहराता जा रहा है। अभी हाल ही में रूस ने तुर्की को S-400 की पहली खेप पहुंचा दी है और उम्मीद है कि बहुत जल्द भारत को भी S-400 मिल जाएगा।
भारत और तुर्की के साथ रूसी S-400 मिसाइल सौदे का विरोध क्यों कर रहा है अमरीका?
अमरीका मानता है कि रूस ने अमरीकी मिसाइल का सामना करने के लिए इसे डिजाइन किया है। बीते दिनों ट्रंप ने कहा था कि वह इस तरह के सैन्य उपकरण खरीदने वाले किसी भी देश के खिलाफ हैं जिसमें रूसी निर्मित S-400 मिसाइल रक्षा सिस्टम शामिल है, जो कि अमरीका की पांचवीं पीढ़ी के जटिल विमान का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है।
गौरतलब है कि भारत भी रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है। बीते साल अक्टूबर में भारत ने रूस के साथ S-400 खरीदने के लिए 40 हजार करोड़ रुपए का समझौता किया है।
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