राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फिर सताने लगा महाभियोग का डर! अमरीकी सियासत में मचा कोहराम
रूस और कोरिया के बेहतर संबंध
दरअसल, उत्तर कोरिया और रूस के बीच हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं। मॉस्को ने 1950-53 के कोरियाई युद्ध के बाद उत्तर कोरिया के पुनर्निर्माण में भी मदद की। साथ ही उत्तर कोरिया के नेताओं से रूसी नेता बातचीत व सौदा करने में ज्यादा अनुभवी हैं। 2000 में जब पुतिन प्योंगयांग के दौरे पर थे उस दौरान भी कुछ समय के लिए किम जोंग II से मुलाकात की थी। हालांकि दोनों देशों के बीच सोवियत संघ के विघटन के बाद कुछ दूरियां जरूर बढी थी लेकिन किम जोंग-उन के पिता ने 2000 में राष्ट्रपति के रूप में पुतिन के चुनाव के बाद संबंधों को आगे बढ़ाया और फिर तीन बार रूस का दौरा किया। रूस उत्तर कोरिया को एक अच्छे पड़ोसी के तौर पर देखता है और विश्वास करता है।
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किम का एजेंडा क्या है?
बता दें कि अमरीका उत्तर कोरिया पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुका है। लिहाजा अब किम जोंग उन लगातार प्रयासरत हैं कि अमरीक अपने सभी प्रतिबंधों को वापस ले ले। इसके लिए अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से दो बार मुलाकात भी कर चुके हैं। पहली वार्ता जो कि बीते वर्ष जून में हुई थी कुछ हद तक सफल रहा था, लेकिन दूसरी वार्ता जो कि इस वर्ष वियतनाम में फरवरी में हुई, सफल नहीं रहा और दोनों देशों के बीच दूरियां कुछ बढ़ने लगी। दोनों ही बैठकें सिर्फ उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने की मांग के साथ बेनतीजा खत्म हुईं। ट्रम्प ने किम की आर्थिक प्रतिबंधों में ढील देने की बात नहीं मानी। इसे साधने के लिए किम लगातार कोशिश कर रहा है। इसी कोशिश में किम ने अब रूस की और रूख किया है। किम के इस दौरे का मुख्य एजेंडा अमरीकी प्रतिबंधों से राहत पाना है। रूस भी उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम खत्म करने में सहयोग बढ़ा सकता है। बता दें कि रूस में उत्तर कोरिया के लगभग 10 हजार कामगार काम करते हैं। 2017 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के मुताबिक उन सभी कामगारों को वापस उत्तर कोरिया आना होगा। इनसे राहत पाने के लिए किम रूस के साथ कोई समझौता कर सकते हैं।
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रूस-चीन के साथ अमरीका के खट्टे रिश्ते
अमरीका के साथ वार्ता विफल होने और किसी तरह से प्रतिबंधों से राहत न मिलने की उम्मीद के बीच किम जोंग-उन नई रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। कुछ वर्षों से रूस और चीन ? के साथ अमरीका के रिश्ते ठीक नहीं है। ट्रेड वार व आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों के साथ अमरीका की दूरियां बढ़ी है। किम जोंग-उन इसका फायदा उठाते हुए रूस और चीन के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाकर अमरीका को मात देना चाहता है। उत्तर कोरिया लंबे समय से चीन पर अपने प्राथमिक व्यापारिक साझेदार के रूप में निर्भर है। किम ने सियोल को संयुक्त अंतर-कोरियाई परियोजनाओं में भाग लेने के लिए अपने रेलमार्गों के पुनर्निर्माण और बुनियादी ढांचे में सुधार करने के लिए भी जोर दिया है। अब बीते वर्ष सिंगापुर में पहली बार डोनाल्ड ट्रंप से किम ने मुलाकात की थी तो उम्मीद थी की वार्ता आगे बढ़ेगी और उत्तर कोरिया को प्रतिबंधों से राहत मिल सकता है। इसके लिए अमरीका ने उत्तर कोरिया को परमाणु परीक्षण पर रोक लगाने की बात कही। लेकिन यह वार्ता आगे बढ़ नहीं सकी और इस वर्ष फरवरी में वियतनाम में जब दोनों नेता फिर से मिले तो वार्ता विफल रही। कोई भी अपने कदम पीछे लेने को तैयार नहीं हुआ। दूसरी तरफ लिहाजा अब किम नए मार्ग के जरिए अमरीका को परास्त करना चाहते हैं। इसलिए किम अमरीका के बजाए अब रूस की गोद में बैठ रहे हैं।
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