ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी के प्रारंभ में उत्तरी अमरीका और यूरोप से हुई थी। खास बात यह है कि महिला समानता पर जोर देने का श्रेय श्रमिक आंदोलनों को जाता है। महिला समानता को लेकर पहली बार श्रमिक संगठनों ने ही आवाज उठाने का काम शुरू किया। उसके बाद से यह आंदोलन दुनिया भर में तेजी से फैल गया। अब यह दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाने लगा है। आठ मार्च को सभी देशों में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
1909 में 28 फरवरी को सबसे पहले अमरीका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। इसकी शुरुआत का श्रेय अमरीका सोशलिस्ट पार्टी ने न्यूयॉर्क में 1908 गारमेंट्स इंडस्ट्री में हुए श्रमिकों आंदोलनों को हुआ।
1910 में कोपेनहेगन सम्मेलन के बाद पहली बार अमरीका से बाहर 19 मार्च को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया गया। यूरोप के इन देशों में इस अवसर पर एक रैली का भी आयोजन किया गया। 110 वर्ष पहले इस रैली में करीब 10 लाख महिलाएं शामिल हुईं थीं। आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं ने महिलाओं को काम करने, व्यावसायिक प्रशिक्षण देने और लैंगिंक भेदभाव को समाप्त करने की मांग की।
1913-14 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम विश्व युद्ध और असमानता के विरोध का प्रतीक बन गया। यूरोप में आठ मार्च और उसके आसपास के दिनों में महिलाओं ने युद्ध का विरोध और वैश्विक एकजुटता व शांति के लिए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। युद्ध के खिलाफ रूस में महिलाओं ने फरवरी 1917 में “ब्रेड एंड पीस” के मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन और हड़ताल किया। इसके बाद 1975 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सदस्य राज्यों को महिलाओं के अधिकारों और विश्व शांति के लिए 8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में घोषित करने के लिए आमंत्रित किया।
1995 में बीजिंग घोषणा पत्र और प्लेटफॉर्म फार एक्शन के दौरान 189 देशों ने एक ऐतिहासिक रोडमैप पर हस्ताक्षर किए गए। इस रोडमैप में एक ऐसी दुनिया की कल्पना की गई जहां प्रत्येक महिला और लड़की अपनी पसंद से काम और करिअर का चुनाव कर सके। यह क्षेत्र राजनीति, कारोबार, शिक्षा, धर्म आदि में से कुछ भी क्यों न हो? महिलाओं को काम करने का समान रूप से आजादी मिलनी चाहिए।