47 ज्वालामुखी की पहले हो चुकी है खोज
ब्रिटेन में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार इस क्षेत्र में 91 ज्वालामुखियों का और पता चला है। जबकि कुछ समय पहले ही 47 ज्वालामुखी खोजे जा चुके हैं। इन में से कुछ ज्वालामुखी स्विट्जरलैंड के 4 हजार मीटर ऊंचे ईगर पर्वत के बराबर हैं।
ब्रिटेन में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार इस क्षेत्र में 91 ज्वालामुखियों का और पता चला है। जबकि कुछ समय पहले ही 47 ज्वालामुखी खोजे जा चुके हैं। इन में से कुछ ज्वालामुखी स्विट्जरलैंड के 4 हजार मीटर ऊंचे ईगर पर्वत के बराबर हैं।
100 से 3850 मीटर ऊंचे हैं ज्वालामुखी
वैज्ञानिकों के मुताबिक नए खोजे ज्वालामुखी 100 से लेकर 3850 मीटर ऊंचे हैं। ये सभी ज्वालामुखी बर्फ की मोटी चादरों से ढके हुए हैं। यह ज्वालामुखी पश्चिम अंटार्कटिक रिफ्ट सिस्टम में मौजूद हैं। ये ज्वालामुखी अंटार्कटिका प्रायद्वीप के रोज आईस सेल्फ से तकरीबन 3500 किमी दूर है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ज्वालामुखियों की संख्या ज्यादा या कम भी हो सकती है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक नए खोजे ज्वालामुखी 100 से लेकर 3850 मीटर ऊंचे हैं। ये सभी ज्वालामुखी बर्फ की मोटी चादरों से ढके हुए हैं। यह ज्वालामुखी पश्चिम अंटार्कटिक रिफ्ट सिस्टम में मौजूद हैं। ये ज्वालामुखी अंटार्कटिका प्रायद्वीप के रोज आईस सेल्फ से तकरीबन 3500 किमी दूर है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ज्वालामुखियों की संख्या ज्यादा या कम भी हो सकती है।
विश्व का सबसे ज्यादा ज्वालामुखी वाला क्षेत्र!
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट बिंघम के मुताबिक रोज आईस सेल्फ के नीचे स्थित समुद्र की सतह पर और और भी ज्वालामुखी होने की संभावना है। उनके अनुसार यह क्षेत्र दुनिया के सबसे ज्यादा ज्वालामुखी वाला क्षेत्र होगा, जोकि पूर्वी अफ्रीका के मुकाबले कहीं अधिक होगा, जहां पर माउंट न्यिरोगोंगो, किलिमंजारो, लोंगोनॉट और अन्य सभी सक्रिय ज्वालामुखी मौजूद हैं।
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट बिंघम के मुताबिक रोज आईस सेल्फ के नीचे स्थित समुद्र की सतह पर और और भी ज्वालामुखी होने की संभावना है। उनके अनुसार यह क्षेत्र दुनिया के सबसे ज्यादा ज्वालामुखी वाला क्षेत्र होगा, जोकि पूर्वी अफ्रीका के मुकाबले कहीं अधिक होगा, जहां पर माउंट न्यिरोगोंगो, किलिमंजारो, लोंगोनॉट और अन्य सभी सक्रिय ज्वालामुखी मौजूद हैं।
वैज्ञानिकों ने जताई चिंता वैज्ञानिकों के अनुसार यह अंटार्कटिका का यह क्षेत्र पृथ्वी का सबसे बड़ा ज्वालामुखीय क्षेत्र है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि के बाकी ग्रहों के लिए खतराक साबित हो सकती हैं। यदि इनमें से कोई ज्वालामुखी फूट पड़ा तो वह पश्चिम अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों को अस्थिर कर सकता था। शोधकर्ताओं के अनुसार वर्तमान में अधिकांश ज्वालामुखी उन क्षेत्रों में हैं जहां ग्लेशियर खत्म हो चुके हैं। उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा पश्चिमी अंटार्कटिका में भी हो सकता है।