हम बात कर रहे हैं नॉर्थ-ईस्ट के 2 राज्य मेघालय और त्रिपुरा की, जहां पर हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है। त्रिपुरा और मेघालय में खासी जाति के लोग रहते हैं। इन राज्यों में खासी जाति के लोगों का खासा दबदबा है। इस जाति के लोग पुरुषप्रधान नहीं बल्कि नारी प्रधान समाज में विश्वास रखते हैं। खासी जाति के लोग मातृवंशीय यानी कि महिलाओं के प्रभुत्व को सिर-माथे पर रखने वाली जनजाति के रूप में जाने जाते हैं।
हमारे देश में इन दोनों राज्यों को छोड़कर हर जगह पुरुष प्रधान समाज को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती है, लेकिन मेघालय और त्रिपुरा में खासी जाति के लोग नारी प्रधान समाज में जी रहे हैं। खासी समुदाय में कोई मर्द किसी औरत को ब्याह कर अपने घर नहीं लाता, बल्कि मर्दों को शादी करने के बाद अपनी पत्नी के घर जाना होता है। इसके अलावा शादी के बाद जब बच्चे होते हैं तो उन बच्चों को पिता के सरनेम की जगह मां का सरनेम दिया जाता है। इतना ही नहीं पैतृक संपत्ति की हकदार परिवार की सबसे छोटी बेटी होती है और यदि किसी कुटुंब में कन्या का जन्म न हो, तो उसे एक बेटी गोद लेनी पड़ती है।
महिलाओं का इससे बेहतर स्थिति शायद ही किसी राज्य में हो सकती है। मेघालय और त्रिपुरा में महिलाओं का बोलबाला है। लेकिन इसके बावजूद भी वहां की महिलाएं लोकतंत्र में अपनी भागीदारी को लेकर संघर्ष करती हैं। ये बात हाल ही में हुए यहां के चुनावों में पता चली है। मेघालय के कुल 372 उम्मीदवारों में महज 33 महिलाएं थीं। इस मामले में त्रिपुरा को अपेक्षाकृत बेहतर पाया। यहां 297 उम्मीदवारों में 35 करोड़पति थे और प्रत्याशियों की औसत संपत्ति 46.92 लाख रुपये थी। महिलाओं का औसत यहां भी दयनीय है। कुल जमा 20 महिला उम्मीदवारों ने यहां से परचे दाखिल किए थे।