अब इसरो को अमरीकी नासा से उम्मीद सबसे ज्यादा है। हालांकि अपने पहले प्रयास में नासा को चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क करने में सफलता नहीं मिली। लूनर नाइट के बाद नासा का लूनर रिमॉनसेंस ऑर्बिटर ( एलआरओ ) दूसरी बार 14 अक्टूबर को लैंडर विक्रम के पास से गुजरा है। इस बार भी नासा का एलआरओ उसी जगह पर पहुंचा है जहां पर भारतीय स्पेस एजेंसी ने अपना चंद्रयान-2 द्वारा लैंडर विक्रम को भेजा था।
Indo-Pak बॉर्डर पर तैनात होगा एंटी ड्रोन सिस्टम, हवा में दुश्मन के अरमानों को कर देगा ध्वस्त नासा से है इसरो को सबसे ज्यादा उम्मीद बता दें कि इससे पहले नासा का एलआरओ 17 सितंबर को लैंडर के ऊपर से गुजरा था। लेकिन अंधेरा होने की वजह से सही तस्वीर लेने में नासा को सफलता नहीं मिली थी। नासा के दूसरे प्रयास से इसरो को काफी उम्मीदें हैं। एलआरओ ने इस बार भी लैंडर की तस्वीर ली है। लेकिन नासा ने अभी तक कोई ईमेज या डेटा जारी नहीं किया है। बताया जा रहा है कि नासा एलआरओ प्रोजेक्ट के अंतरिक्ष विज्ञान डेटा का अध्ययन कर रहे हैं।
नोआ ई पेत्रो ने किया था पहले प्रयास से पहले इस बात का जिक्र अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ ई पेत्रो ने पहले प्रयास के दौरान कहा था कि चांद पर शाम होने लगी है। हमारा LRO विक्रम लैंडर की तस्वीरें तो लेगा, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि तस्वीरें स्पष्ट आएंगी या नहीं। क्योंकि शाम को सूरज की रोशनी कम होती है और ऐसे में चांद की सतह पर मौजूद किसी भी वस्तु की स्पष्ट तस्वीरें लेना चुनौतीपूर्ण काम होगा। लेकिन इस बार चांद के दक्षिण ध्रुव पर तेज धूप है। इसलिए नासा से इसरो को उम्मीदें भी ज्यादा हैं।
जम्मू-कश्मीर: फारूक अब्दुल्ला की बहन और बेटी को मिली जमानत, दो दिन से थी नजरबंद इसरो इसलिए ले रहा है नासा की मदद दरअसल, नासा का एक मिशन लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर ( एलआरओ ) चंद्रयान-2 के मुकाबले चांद के ज्यादा करीब चक्कर लगा रहा है। इसलिए इसरो को नासा से बेहतर डेटा मिलने की उम्मीद है। फिर नासा के पास डेटा एनालिसिस का अनुभव भी ज्यादा है।
LRO ने चांद की सतह का 3D नक्शा बनाया है। इसने चांद की सतह का लगभग 98 प्रतिशत हिस्सा कवर कर लिया है। इस हिस्से में चांद का दक्षिणी ध्रुव भी आता है, जिस पर इस समय चंद्रयान के विक्रम लैंडर के होने की आशंका जताई जा रही है।
फिर LRO पर कुल 6 डिवाइस मौजूद हैं। इस पर मौजूद कैमरा सबसे ज्यादा रोचक है। इन कैमरों की मदद से विक्रम लैंडर को ढूंढने का नासा लगातार प्रयास कर रहा है। अब तक एलआरओ का कैमरा 70-100 टेराबाइट का डाटा भेज चुका है। खासकर इस कैमरे की मदद से उन सारी थ्योरी का खंडन करने में मदद मिल रही है, जिसके बारे में कहा जाता है कि बज़ एल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रोंग चांद पर उतरे ही नहीं। बल्कि उनकी लैंडिंग किसी स्टूडियो के अन्दर शूट की गई थी।