25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन ( Lockdown ) लागू होने के बाद प्रवासी मजदूर घर वापस आना चाहते थे, पर इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar ) तैयार नहीं थे। सीएम नीतीश कुमार ने काफी ना-नुकुर के बाद भी जब इस पर राजनीति जोर पकड़ने लगा तोा उन्होंने प्रवासी मजदूरों को वापस आने की इजाजत दी। नीतीश का यही रवैया अब उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से लेकर मई महीने के पहले पखवाड़े तक बिहार से बाहर के राज्यों में रहने वाले प्रवासी मजदूर ( Migrant Laborers ) बड़ी संख्या में प्रदेश वापस लौट आए। बताया जा रहा है कि 20 लाख से अधिक प्रवासियों ने घर वापसी की थी।
Ladakh : चीन न कर दे ‘गद्दारी’, सेना कर रही है सर्दियों के लिए अभी से तैयारी तब यही कहा जा रहा है कि इनके कारण प्रदेश में कोरोना का संक्रमण ( Corona infection ) तेज होगा। हालांकि कोरोना संक्रमण के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करेंगे तो ये आशंका निर्मूल साबित हुई है कि प्रवासियों के कारण कोरोना का संक्रमण फैला है।
प्रदेश सरकार की लापरवाही आई सामने सच यह है कि कोरोना विस्फोट के लिए प्रवासी मजदूरों को दोषी ठहराना बिल्कुल ही जायज नहीं है, बल्कि नीतीश सरकार ( Nitish Government ) की नाकामी इसमें ज्यादा नजर आती है।
इस बात को आप कोरोना मरीजों की जिलेवार संख्या के आंकड़ों के आधार पर ही साबित किया जा सकता है। जिन आंकड़ों पर इसे नीतीश कुमार को फेल साबित किया जा सकता है वो आंकड़ो भी बिहार सरकार के ही हैं। केंद्र या किसी स्वायत्त या निजी एजेंसियों के नहीं।
इस रणनीति के तहत भूटान के मोर्चे पर है चीन को चेक करने की योजना, जानिए भारत की तैयारी सीएम ने कोरोना का उपचार कम राजनीति ज्यादा की दरअसल, बिहार में कोरोना वायरस के संक्रमण ( Coronavirus infection ) का पहला केस 22 मार्च को मिला था, जब पटना एम्स में भर्ती किए गए मोहम्मद सैफ की मृत्यु के बाद उसकी रिपोर्ट कोविड पॉजिटिव ( Covid-19 positive ) आई थीं इसके बाद प्रदेश में 23 मार्च को लॉकडाउन ( Lockdown ) घोषित कर दिया गया।
1 जुलाई को बिहार में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 10,250 थी। 22 जुलाई को कोरोना मरीजों की संख्या करीब तीन गुना ज्यादा 30,066 हो गई। आंकड़ों पर नजर डालें तो इसमें सबसे अधिक प्रभावित 10 जिले हैं जिनमें पटना सबसे ऊपर है।
22 जुलाई शाम 5 बजे तक के आंकड़ों पर गौर करें तो पटना में 4479, भागलपुर में 1859, मुजफ्फरपुर में 1382, सिवान में 1154, नालंदा में 1051 और नवादा में 898 कोरोना मरीज पाए गए हैं। इन जिलों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि पटना में जहां 21,433 तो गया में 73769 प्रवासी मजदूर लौटे थे।
MEA S Jayshankar : वैश्विक मुद्दों पर भारत और अमरीका को बड़ा सोचने की जरूरत प्रवासी मजदूरों पर दोष मढ़ना गलत दूसरी तरफ सरकार के आंकड़े ही बताते हैं कि जिन जिलों में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर लौटे, वहां कोरोना वायरस की संख्या सीमित है। आंकड़ों पर ही गौर करें तो मधुबनी ( Madhubani ) में जहां 98,175 प्रवासी लौटे वहां कोरोना वायरस के 718 मामले दर्ज हैं। इसी तरह पूर्वी चंपारण में 93,293 प्रवासी मजदूर लौटे, वहां अभी तक 678 संक्रमित मरीज मिले हैं। इसके अलावा कटिहार में 85,797 प्रवासी मजदूर लौटे लेकिन कोरोना पॉजिटिव की संख्या महज 619 है।
इसी तरह दरभंगा ( Darbhang ) में 76,556 प्रवासी लौटे और कोविड-19 के महज 545 मामले ही दर्ज हैं। पश्चिम चंपारण में 62,737 प्रवासी लौटे और संक्रमितों की संख्या 913 हैं अररिया में 7926 प्रवासी लौटे यहां 300 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इसी तरह रोहतास में 59739 प्रवासी मजदूर मजदूरों ने घर वापसी की जबकि कुल 1051 मामले दर्ज किए गए हैं।
पूर्णिया में 59171 प्रवासी मजदूर लौटे हैं और संक्रमितों का आंकड़ा महज 434 है। समस्तीपुर में 54505 प्रवासी लौटे जहां अभी तक 827 मामले ही दर्ज किए गए हैं। आंकड़ों से साफ है कि बिहार में कोरोना विस्फोट के लिए प्रवासी मजदूरों पर दोष मढ़ना पूरी तरह से निराधार है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( ima ) की बिहार इकाई ने बिहार में मौजूदा कोरोना संक्रमण के लिए राज्य सरकार की लापरवाही और लेटलतीफी को जिम्मेवार ठहराया है।
बिहार सरकार जिम्मेदार आईएमए के बिहार प्रदेश के वरीय उपाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने मीडिया को बताया कि सूबे में लंबे अरसे से डॉक्टरों के पद खाली हैं। आगाह किए जाने के बावजूद सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। डॉ अजय ने कहा कि आज हालात ऐसे बन गए हैं कि सरकार को इच्छाशक्ति के साथ काम करना होगा और तभी हम कोरोना वायरस से जीत सकेंगे।