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श्रावणी मेला पर coronavirus का संकट, ICU में Bihar की अर्थव्यवस्था!

Coronavirus के कारण Bihar श्रावणी मेला प्रभावित लाखों लोगों पर आर्थिक संकट ( Economic Crisis ), कई लोग भूखे मरने की कगार पर

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Kaushlendra Pathak

Jul 22, 2020

Virus strikes down Shravani mela in Bihar

श्रावणी मेला पर कोरोना वायरस का संकट

नई दिल्ली। कोरोना वायरस ( coronavirus in India ) के कारण पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। इस महामारी के कारण पूरी अर्थव्यवस्था ( Economy ) चौपट हो गई है। साथ ही इस वायरस ने पर्व-त्यौहार को भी फीका कर दिया है। इसी कड़ी में बिहार ( coronavirus in Bihar ) के प्रसिद्ध श्राणवी मेला ( Shravani Mela ) को भी स्थगित कर दिया गया है। आलम ये है कि बिहार की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है। सावन ( Sawan ) के पावन महीने में लगने वाले इस मेले से लाखों लोगों की सालों की कमाई होती थी। लेकिन, कोरोना वायरस ( coronavirus ) के कारण सबकुछ तबाह हो गया है। इतना ही नहीं इसका असर स्थानीय कृषि पर भी पड़ा है।

दरअसल, हर साल जुलाई-अगस्त महीने में श्राणवी मेला ( Shravani Mela ) का आयोजन होता है। लेकिन, इस बार इस मेले पर कोविड-19 ( COVID-19 ) के बादल छाए हुए हैं। सुल्तानगंज ( Sultanganj ) में घाटों की चुप्पी इस दर्द को हर तरह से बयां कर रही है। इसके कारण आस-पास के गांवों में रहने वाले लोगों की आजीविका पर भी असर पड़ा है। दरअसल, भागलपुर ( Bhagalpur ) शहर बिहार ( Bihar ) के स्मार्ट शहरों में से एक है। जिले में 1,500 से अधिक गाँव हैं, दो बड़ी नदियाँ हैं और एक रेशम उद्योग के लिए जाना जाता है। भागलपुर के सुल्तानगंज को तीर्थ शहर ( pilgrimages ) के रूप में जाना जाता है, जिसमें गंगा के किनारे बाबा अजगवी नाथ शिव मंदिर है। देश के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक इस शहर से प्रत्येक वर्ष जुलाई के पहले सप्ताह में कांवर यात्रा शुरू होता है, जहां एक लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं।

भक्त “बम बम महादेव” का जाप करते हैं, गंगा ( Ganga ) के पवित्र जल को एकत्र करते हैं और झारखंड के देवघर ( Deoghar ) में 108 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर पहुंचते हैं। सुल्तानगंज से 30 किलोमीटर दूर भागलपुर शहर में भी कांवरिया ( Kanwariya ) मार्ग के पोस्टर लगे हैं, जिन्हें कभी नहीं हटाया जाता है। सुल्तानगंज के एक प्रभावशाली पांडा लाल मोहरिया ( Lal moharaia ) का कहना है कि श्रावणी मेले में कभी भी एक लाख से कम लोग नहीं आते। उन्होंने कहा कि नेपाल ( Nepal ), भूटान ( Bhutan ), झारखंड ( Jharkhand ), उत्तर प्रदेश ( Uttar Pradesh ), पश्चिम बंगाल ( West Bengal ), गुजरात ( Gujarat ), मध्य प्रदेश ( Madhya Pradesh ), और पूरे बिहार जैसे राज्यों से लोग आते हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल के केवल तराई क्षेत्र से कम से कम 4 से 5 लाख भक्त आते हैं। सुल्तानगंज की हर गली में शाकाहारी भोजन, फलों के स्टॉल, बोर्डिंग और ठहरने की सुविधा, दवाई की दुकानें और फूलों के विक्रेता हैं। मोहरिया का कहना है कि सुल्तानगंज की पूरी अर्थव्यवस्था सावन के एक महीने पर आधारित है, जो मोटे तौर पर बाकी साल के लिए रहता है।

बताया जा रहा है कि श्रावणी मेला बंद होने के कारण इस साल इसका प्रभाव केवल सुल्तानगंज में ही नहीं, बल्कि 60 किलोमीटर दूर गंगा के पार नौगछिया प्रखंड के सोनबरसा गांव में भी महसूस किए जा रहे हैं। कोसी के तट पर बसे इन गांवों में केले का अधिकांश उत्पादन किया जाता और मेले में लाकार बेचा जाता है। सैरभ नामक फल विक्रेता का कहना है कि मेला शुरू नहीं होने के कारण इसकी बहुत कम मांग है। सरकार को हमारे लिए कुछ सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेले के दौरान 250 रुपए एक बंडल का मिलता है। लेकिन अब यह मुश्किल से 70-80 रूपए में बिक रहा है। उन्होंने कहा कि मुझे यह नहीं पता कि बचे फसल कैसे बिकेंगे।

भागलपुर के जिला कृषि अधिकारी के के झा का कहना है कि बिहार के किसान लॉकडाउन के दौरान निश्चित रूप से प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा, 'किसानों ने मंत्रियों को अवगत कराया है कि उन्हें पिछले साल जो दरें नहीं मिली थीं, वे मिल रही हैं। राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि अगर किसान हमारे पास ट्रकों के साथ परिवहन में मदद मांगते हैं या एक बाजार ढूंढते हैं, तो हम कोशिश करते हैं और उनकी मदद करते हैं। कुछ केला किसानों ने हमसे शिकायत की और हमने राज्य के बाहर से कुछ ग्राहक प्राप्त किए और फसल को भेज दिया। लेकिन, सबके लिए यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि ये मैं भी जानता हूं और किसान भी जानते हैं। लॉकडाउन ने काफी कुछ प्रभावित कर दिया है। लाल मोहरिया का कहना है कि सरकार को आर्थिक रूप से निर्भर लोगों के लिए कुछ करना चाहिए था। इस बिंदु पर, जो लोग एक साथ फूल या कांववर बनाते हैं, वे भूख मरने की कगार पर हैं। इतना ही नहीं 15 या 20 दिनों में स्थिति और खराब हो जाएगी। हालांकि, सभी लोग 'पांडा' से सहमत नहीं हैं। हालांकि, यह बात साफ है कि कोविड-19 के कारण लाखों लोगों के रोजगार पर जरूर असर पड़ा है।