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साल 2016 में वाशिंगटन में दलाई लामा और तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच हुई मीटिंग के बाद इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि इस मुलाकात से बाइडन प्रशासन ने चीन को यह संदेश दिया है कि अमेरिका तिब्बत मुद्दे का समर्थन जारी रखेगा। इस मुलाकात के इतर, तिब्बत के अन्य प्रतिनिधि गीशी दोरजी दामदुल ब्लिंकल की ओर से सात नागरिक समाज के सदस्यों के साथ की गई गोलमेज बैठक में शामिल हुए। माना जा रहा है कि सिटीए को हाल के कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब समर्थन मिला है। बीते साल नवंबर में ही निर्वासित तिब्बती सरकार (सीटीए) के पूर्व प्रमुख लोबसंग सांगे ने व्हाइट हाउस का दौरा किया था, जिसे पिछले छह दशकों में इस तरह की पहली यात्रा के तौर पर भी देखा गया। भारत भी चीन के खिलाफ अपना सकता है कड़ा रुख
6 जुलाई को दलाई लामा के जन्मदिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें 86वें जन्मदिन की बधाई दी थी, जिसके बाद से ही यह माना जा रहा है कि भारत भी चीन के प्रति कड़ा रूख अपना सकता है। इसी दिन कुछ चीनी सैनिक दलाई लामा का विरोध करने के लिए भारत की सीमा में घुस आए थे हालांकि विरोध के झंडे व बैनर दिखाकर, वे वापस लौट गए।
6 जुलाई को दलाई लामा के जन्मदिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें 86वें जन्मदिन की बधाई दी थी, जिसके बाद से ही यह माना जा रहा है कि भारत भी चीन के प्रति कड़ा रूख अपना सकता है। इसी दिन कुछ चीनी सैनिक दलाई लामा का विरोध करने के लिए भारत की सीमा में घुस आए थे हालांकि विरोध के झंडे व बैनर दिखाकर, वे वापस लौट गए।
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क्या है पूरा मामला, चीन क्यों है दलाई लामा के खिलाफगौरतलब की साल 1950 में चीनी सैनिकों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, जिसे चीनी सरकार शांतिपूर्ण मुक्ति कहती है। साल 1959 में चीनी सरकार के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा भारत आ गए थे। चीन का दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ 2010 के बाद से किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं है। चीन ने दलाई लामा पर अलगाववादी गतिविधियों में शामिल होने और चीन से तिब्बत को अलग करने के आरोप लगाए थे। हालांकि दलाई लामा ने कहा था कि वे बंटवारा नहीं चाहते बल्कि तिब्बत के पारंपरिक तीन प्रांतों में रह रहे सभी तिब्बतवासियों के लिए वास्तविक स्वायत्ता चाहते हैं।