दरअसल जलियांवाला नरसंहार का आदेश देने वाले जनरल डायर की मृत्यु 1927 में ही ब्रेन हेमरेज से हो चुकी थी। ऐसे में उधम सिंह का पूरा आक्रोश इस घटना के वक्त रहे पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर पर उतरा। इसका सबसे बड़ा कारण यही था कि ड्वायर ने नरसंहार की घटना को उचित बताते हुए जनरल डायर की सराहना की थी। यही कारण था कि उधम सिंह ने ब्रिटिश सरकार को कड़ा संदेश देने के लिए ब्रिटेन पहुंच कर ड्वायर की हत्या की। इस घटना के बाद भी उन्होंने भागने की कोशिश नहीं वरन स्वयं ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद उन पर कोर्ट में केस चलाकर उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई।
जवाहरलाल नेहरू ने भी की थी तारीफ
शहीद उधम सिंह के इस कारनामे की तत्कालीन कांग्रेस नेता और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा कि यह घटना अफसोसजनक है परन्तु ब्रिटिश शासन को चेतावनी देने के लिए अत्यावश्यक थी।
शहीद उधम सिंह के इस कारनामे की तत्कालीन कांग्रेस नेता और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा कि यह घटना अफसोसजनक है परन्तु ब्रिटिश शासन को चेतावनी देने के लिए अत्यावश्यक थी।
कोर्ट में जज ने पूछा था उधम सिंह से यह सवाल
माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर की हत्या के बाद उधम सिंह को गिरफ्तार कर उन पर ब्रिटिश कोर्ट में केस चलाया गया। उस समय जज ने उनसे एक प्रश्न पूछा कि उन्होंने ड्वायर के दोस्तों को क्यों नहीं मारा। इस पर उधम सिंह ने जवाब दिया था कि वहां पर कई औरतें थीं और हमारी संस्कृति में औरतों पर हमला करना पाप है। इस एक प्रसंग से ही हम शहीद उधम सिंह के व्यक्तित्व का सहज अंदाजा लगा सकते हैं।
माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर की हत्या के बाद उधम सिंह को गिरफ्तार कर उन पर ब्रिटिश कोर्ट में केस चलाया गया। उस समय जज ने उनसे एक प्रश्न पूछा कि उन्होंने ड्वायर के दोस्तों को क्यों नहीं मारा। इस पर उधम सिंह ने जवाब दिया था कि वहां पर कई औरतें थीं और हमारी संस्कृति में औरतों पर हमला करना पाप है। इस एक प्रसंग से ही हम शहीद उधम सिंह के व्यक्तित्व का सहज अंदाजा लगा सकते हैं।