खासतौर से चीन, पाकिस्तान और नेपाला के साथ संबंधों और अपने ऐतिहासिक फैसलों के बारे में लाल किले के प्राचीर से उनके संदेश पर टिकी है। फिलहाल संपूर्ण विश्व बिरादरी ( World Community ) अभी इस ऐतिहासिक पल को लेकर कयासबाजी में मशगूल है।
जानकारी के मुताबिक चीन के साथ विवाद और कोरोना संकट के दुष्प्रभाव से पार पाने के लिए में आत्मनिर्भर भारत ( Atmanirbhar Bharat ) की भावी कार्य योजना के साथ कुछ नए मिशन पर पीएम इस बार जोर दे सकते हैं।
Quit India movement : महात्मा गांधी ने 8 अगस्त को इस आंदोलन मुहिम छेड़ हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत की नींव सियासी और कूटनयिक जानकारों के एक गुट का कहना है कि प्रधानमंत्री का इस बार का स्वतंत्रता दिवस संबोधन पिछले संबोधनों से हटकर होगा। इसकी एक वजह कोरोना महामारी से उपजे हालात और पड़ोसी देशों से चल रहे तनावपूर्ण रिश्ते हैं। फिर भारत आत्मनिर्भरता के अपने एजेंडे के साथ पड़ोसियों के साथ अपनी नीति की परोक्ष रूप से समीक्षा भी कर रहा है।
इस बात की संभावना ज्यादा है कि अगला एक साल देश को भीतर और बाहर दोनों मोर्चों पर मजबूत करने का होगा। मोदी सरकार के एजेंडे में संसाधन और सुरक्षा दोनों टॉप एजेंडा ( Top Agenda ) में हो सकता है।
इसके अलावा बीजेपी की भावी राजनीति (
BJP Future Politics ) के लिए भी आने वाला साल महत्वपूर्ण होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में बीजेपी और संघ परिवार के दो बड़े एजेंडे कश्मीर से अनुच्छेद 370 ( Article-370 ) की समाप्ति और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण (
Ram Mandir Nirman ) कार्य शुरू करने का काम किया है।
Kozhikode Plane Crash : Kargil War में इस फाइटर ने Pak के उड़ाए थे होश, इस वजह से IAF के खास पायलटों में थे शुमार अब भाजपा के तीसरे बड़े मुद्दे समान नागरिक संहिता ( Union Civil Code ) की बारी है। बीजेपी नेताओं और देश की एक बड़ी आबादी को लगता है कि लाल किले की प्राचीर से भले ही प्रधानमंत्री के संबोधन में इसका जिक्र न हो लेकिन इस तरह के संकेत हो सकते हैं जिससे मौजूदा हालात में राष्ट्रीय एकता और अखंडता ( National Integrity ) की मजबूती की तरफ सरकार कदम बढ़ा सकती है।
इस तरह के बदलाव को लेकर बीजेपी एक बड़े नेता ने कहा है कि हमारा एजेंडा जो भी रहा हो लेकिन हम सभी काम संवैधानिक तरीके से और पूर्ण न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही कर रहे हैं। अभी तक के जो फैसले लिए गए हैं उनमें इन सब का पूरा पालन किया गया है।
ये बात दीगर है कि कांग्रेस की पिछली सरकारों ने इस बारे में न तो इच्छाशक्ति दिखाई और न ही संवैधानिक तरीके से काम करने की कोशिश की।