विष्णु तिवारी का एक भाई, जिसका नाम है महादेव। वह अक्सर जेल में बंद विष्णु से मिलने आता था। हालांकि, पिछले साल कोरोना महामारी फैलने के बाद से उन दोनों की मुलाकात नहीं हो पा रही थी। मगर इससे पहले मुलाकात के लिए महादेव जब भी जेल में आता था, तो विष्णु की चिंता बढ़ जाती थी। दरअसल, बीते कुछ सालों में विष्णु ने अपने सभी करीबियों को खो दिया। इन सबकी मौत की सूचना महादेव ही लाता था। इसलिए विष्णु महादेव को देखते ही एक बार को कांप जाता था। मुलाकात जब पूरी हो जाती और ऐसा बुरा संदेश नहीं मिलने पर उसकी जान में जान आती थी।
विष्णु के लिए सिर्फ जेल ही उसका बुरा सपना नहीं है। उसे दुख इस बात का भी है कि अपनो को खो दिया और उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया। पिता का देहांत वर्ष 2013 में हुआ। एक साल बाद ही उसकी मां का निधन हो गया। फिर एक-एक कर दो बड़े भाई दुनिया छोड़ गए। पांच भाइयों में विष्णु तीसरे नंबर पर है।
विष्णु के केस को जिसने भी सुना, न सिर्फ हैरान हुआ बल्कि, दुखी भी। वह आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे। आगरा के ही सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस हैं। उन्होंने जब विष्णु की कहानी सुनी, तो उसे न्याय दिलाने का फैसला किया। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर पुलिस के रवैये और पूरी कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। विष्णु को जब झूठे आरोप लगाकर जेल भेजा गया, तब उसकी उम्र 25 साल थी। 20 साल बाद जब वह 45 वर्ष का हो चुका है, तो अपना सब कुछ गंवा भी चुका है। ऐसे में उसके 20 साल कैसे वापस होंगे। नरेश ने विष्णु के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई किए जाने और विष्णु को मुआवजा देने की मांग मानवाधिकार आयोग से की। उसने यह भी कहा कि विष्णु को दिए जाने वाले मुआवजे की रकम पुलिसकर्मियों के वेतन से काटी जाए।
विष्णु जेल में दूसरे बंदियों के लिए खाना बनाते। अब जेल से बाहर आने के बाद वह ढाबा खोलना चाहते हैं, जिससे अपना जीवन चला सकें। हालांकि, इसके लिए पहले उसे पूंजी की जरूरत होगी, जिसके लिए वह कहीं नौकरी करेगा। पैसे जुटाने के बाद ही वह ढाबा खोलेगा।