आईएमए की इस बैच में उसके साथी और दोस्त स्टानिकजई को प्यार से शेरू बुलाते थे। उसके साथियों के मुताबिक शेरू की लंबाई ज्यादा नहीं थी, लेकिन उसका शरीर काफी मजबूत था। खास बात यह है कि शेरू कट्टर धार्मिक विचारों वाला भी नहीं था।
यह भी पढ़ेंः Afghanistan: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया, तालिबान के कब्जे के बाद किस बात पर है भारत का फोकस भगत बटैलियन में था ‘शेरू’
स्टानिकजई की उम्र उस समय 20 साल की थी, जब वह भगत बटैलियन की केरेन कंपनी में 45 जेंटलमैन कैडेट के साथ आईएमए में आया। भारत में ही मिलिट्री की ट्रेनिंग लेने वाला शेरू मौजूदा समय में तालिबान का सबसे काबिल कमांडर है। इस कमांडर को तालिबान शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई के नाम से जानता है।
स्टानिकजई की उम्र उस समय 20 साल की थी, जब वह भगत बटैलियन की केरेन कंपनी में 45 जेंटलमैन कैडेट के साथ आईएमए में आया। भारत में ही मिलिट्री की ट्रेनिंग लेने वाला शेरू मौजूदा समय में तालिबान का सबसे काबिल कमांडर है। इस कमांडर को तालिबान शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई के नाम से जानता है।
स्टानिकजई तालिबान का प्रतिनिधित्व करते हुए कई देशों की यात्रा भी कर चुका है। साथ ही उसने कई शांति वार्ता में भी हिस्सा लिया है। तालिबान के कमांडरों में शेरू को काफी समझदार माना जाता है।
रिटायर्ड मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी शेरू के बैचमेट थे। वे बताते हैं कि ‘उसे सभी लोग पसंद करते थे। वह एकेडमी के दूसरे कैडेट से कुछ ज्यादा उम्र का लगता था। उसकी रौबदार मूंछें थीं। वह एक औसत अफगान कैडेट जैसा ही था।
यह भी पढ़ेंः Afghanistan पर कब्जे के बाद भी Taliban रहेगा कंगाल, जानिए क्या है वजह बता दें कि आईएमए में आजादी के बाद से ही विदेशी कैडेटों को प्रवेश मिलता रहा है। अफगान कैडेटों को भारत-पाक युद्ध के बाद साल 1971 से यह सुविधा मिल रही थी। स्तानिकजई की अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बल से सीधे भर्ती हुई थी।