देर रात रेलवे ने ट्वीट कर आगामी 3 मई तक ट्रेनों के संचालन को लेकर दी बड़ी जानकारी अभी सभी राज्य अपने क्षेत्र में फंसे मजदूरों को पका भोजन दे रहे हैं और कुछ राज्यों में सूखे राशन की आपूर्ति करने का प्रावधान भी है। शोधककर्ताओं में शामिल अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर राजेंद्रन नारायणन का कहना है कि ज्यादातर मजदूरों को सूखा राशन नहीं मिलने का यही कारण है कि वे जहां काम करते हैं, उस राज्य के प्रवासी मजदूरों का डाटाबेस में उनका नाम पंजीकृत नहीं है।
उन्होंने बताया कि अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों की ओर से प्रवासी मजदूरों को पंजीकृत करना जरूरी होता ताकि आपदा के समय उनको खोजा जा सके। एक बार पंजीकृत होने के बाद उनको राशन मिल सकेगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कानून जमीन पर अमल नहीं किया जा रहा।
लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण रोजगार योजना पर काम कर रही शोधकर्ताओं की टीम स्ट्रांडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (एसडब्लयूएएन) ने प्रवासी मजदूरों का पता लगाया। 27 मार्च से 13 अप्रैल के बीच टीम ने 73 वॉलंटियर की मदद से करीब देशभर के 11,159 प्रवासी मजदूरों से फोन पर बात की।
एसडब्लयूएएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली में फंसे मजदूर अपने ठेकेदार के अलावा किसी को जानते ही नहीं हैं। ठेकेदार ही उन्हें उनके गांव से यहां लाया है। बिना राशन कार्ड और आइकार्ड के ही राशन देने का प्रस्ताव कब होगा लागू
उधर, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सरकार बिना राशन कार्ड व आईकार्ड के ही प्रवासी मजदूरों को राशन देने की योजना पर विचार कर रही है लेकिन यह कदम कब उठाया जाएगा, इसे लेकर अधिकारियों के पास कोई ठोस जवाब नहीं है।
लॉकडाउन 2.0 को लेकर गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को दे दिए सबसे बड़े अधिकार, अब खैर नहीं शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर मजदूरों को पका खाने की बजाय सूखा राशन देने पर ध्यान दिया जाए तो मजदूरों की कई दिनों की समस्या दूर हो जाती और वे अपने घर जाने के लिए भी बेबस नहीं होंगे।
गोदामों में बफर स्टॉक, पर सभी मजदूरों को नसीब नहीं दूसरी तरफ देश के गोदामों में गेहूं और चावल का पहले से ही बफर स्टॉक पड़ा हुआ है। सरकार 90 हजार टन गेहूं के निर्यात का फैसला भी लिया है लेकिन सभी गरीब मजदूरों को सूखा राशन नहीं दिया जा रहा है।