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Justice U.U. Lalit, Justice Mohan M. Shantanagoudar and Justice Vineet Saran की तीन सदस्यीय पीठ ( Three-member bench ) ने कहा कि क्या संवधिान के अनुच्छेद 161 ( Article 161 of the Constitution ) के तहत प्रदत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कोई नीति बनाई जा सकती है, जिसमें कुछ ऐसे निमय या मानक निर्धारित किए जा सकते हैं, जिनके आधार पर सरकार द्वारा सजा कम की जा सकती है, वह भी इस तरह के मामलों से जुड़े तथ्यों और सामग्रियों को राज्यपाल के समक्ष रखे बगैर? और क्या इस तरह का कदम धारा 433-ए ( Section 433-A ) के तहत आने वाली जरूरतों को दरकिनार कर सकता है?
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शीर्ष अदालत ने हरियाणा के एक उम्रकैद के दोषी की समय से पहले रिहाई के मामले में अधिवक्ता शिखिल सुरी ( Advocate Shikhil Suri ) द्वारा दी गई सहायता की भी सराहना की। यह मुद्दा एक हत्यारोपी प्यारे लाल द्वारा दायर की गई लंबित जमानत याचिका से सामने आया, जो 75 वर्ष से अधिक उम्र का है। सूरी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि उसे हरियाणा राज्य के नियम के फलस्वरूप आठ वर्ष की सजा काटने के बाद पहले ही माफी मिल चुकी है। इस पर शीर्ष अदालत ( SC ) ने कहा कि वर्तमान मामले में अपनाए गए तौर तरीके से पता चलता है कि मामले के व्यक्तिगत तथ्य और परिस्थिति को राज्यपाल के समक्ष नहीं रखा गया।
अदालत ने पूछा कि क्या क्षमादान देते वक्त मूल पहलुओं पर विचार किया गया कि किस तरीके से अपराध को अंजाम दिया गया है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।