प्राइवेट अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं। उन्हें जीवन की कीमत पर समृद्ध नहीं होने दिया जा सकता। बेहतर होगा, ऐसे अस्पतालों को बंद कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम.आर. शाह की पीठ राजकोट और अहमदाबाद के अस्पतालों में आगजनी की घटनाओं के मद्देनजर देशभर के कोविड-19 अस्पतालों में आग की त्रासदियों से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि निजी अस्पतालों को छोटे आवासीय भवनों में संचालित करने की अनुमति देने के बजाय राज्य सरकारें बेहतर अस्पताल प्रदान कर सकती हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने ये बात देश भर में कोविड – 19 मरीजों के उचित इलाज़, पार्थिव शरीरों के रखरखाव, कोविड – 19 अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं से जुड़ी स्वत: संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए कही। शीर्ष अदालत ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर एक आयोग की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में दायर करने पर भी नाराजगी जताई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में आयोग की यह कौन-सी रिपोर्ट है? यह कोई परमाणु रहस्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे अस्पतालों को बंद किया जाए जो इंसानी जान की कीमत पर फल-फूल रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कई अस्पतालों द्वारा आग से बचाव के लिए ज़रूरी नियमों का पालन नहीं किए जाने पर टिप्पणी की।
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उन्होंने कहा, अस्पताल अब एक बड़े उद्योग में बदल गए हैं जो लोगों के दुख – दर्द पर फल-फूल रहे हैं. हम इन्हें इंसानी जान की कीमत पर समृद्ध होने की अनुमति नहीं दे सकते। ऐसे अस्पताल बंद किए जाएं और सरकार को हेल्थ केयर फैसिलिटीज़ (स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी सुविधाएं जैसे अस्पताल आदि) को मजबूत करने दिया जाए। ऐसे अस्पतालों को चार कमरों की इमारत में काम करने की इजाज़त नहीं दी जाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अस्पताल में आग लगने की वजह से मरने वाले एक व्यक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि एक शख़्स कोविड – 19 से ठीक हो गये थे, उन्हें अगले दिन अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी लेकिन अस्पताल में आग लगने की वजह से वह दो अन्य नर्सों के साथ ज़िंदा जलकर मर गये। इस पर पीठ ने कहा, ये हादसे हमारी आँखों के सामने हो रहे हैं. ये अस्पताल रियल इस्टेट इंडस्ट्री हैं या मानवता के लिए एक सेवा हैं।