अब सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए केंद्र सरकार से मौजूदा कोविड-19 मूल्य नीति पर फिर से विचार करने को कहा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि मौजूदा कोरोना टीका नीति पर पुन: विचार करें, यदि ऐसा नहीं किया गया तो इससे असमानता पैदा हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में इससे लोक स्वास्थ्य के अधिकार के लिए हानिकारक नतीजे होंगे।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि आज की तारीख में वैक्सीन निर्माताओं ने दो अलग कीमतों का सुझाव दिया है। इसके तहत, केंद्र के लिए कम कीमत और राज्य सरकारों को टीके की खरीद पर अधिक कीमत चुकानी होगी।
विभिन्न वर्गों के साथ नहीं किया जा सकता भेदभाव
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और नए निर्माताओं को आकर्षित करने के नाम पर वैक्सीन निर्माताओं से बातचीत करने के लिए बाध्य करने से 18-44 साल के लोगों को गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस आयु वर्ग के लोगों में भी कई ऐसे होंगे जिनके पास पैसे नहीं हैं, जो बहुजन हैं या दलित और हाशिए के समूहों से संबंधित हैं। अदालत ने कहा कि टीकाकरण जनता की भलाई के लिए किया जा रहा है। हम विभिन्न वर्गों के नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं कर सकते हैं, जो कि समान समस्या का सामना कर रहे हैं।
एक सुझाव के तौर पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार 45 साल और उससे अधिक उम्र की आबादी के लिए मुफ्त टीका प्रदान करे, जबकि राज्य सरकारें 18 से 44 आयु वर्ग की जिम्मेदारी का निर्वहन करे, ऐसी वाणिज्यिक शर्तों पर वे आपस में बातचीत कर सकते हैं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘मौजूदा नीति की संवैधानिकता पर हम कोई निर्णायक फैसला नहीं दे रहे हैं। लेकिन जिस तरह से मौजूदा नीति तैयार की गई है, उससे संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जन स्वास्थ्य के अधिकार के लिए हानिकारक परिणाम होंगे। इसलिए हमारा मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष बराबरी) और अनुच्छेद 21 (जीवन की सुरक्षा और निजी स्वतंत्रता) के पालन के साथ केंद्र सरकार को अपनी मौजूदा टीका नीति पर फिर से गौर करना चाहिए।’’
आपको बता दें कि मौजूदा समय में देशभर में दो स्वदेशी वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ और ‘कोवैक्सीन’ का टीका लगाया जा रहा है। लेकिन अभी हाल ही में इन दोनों कंपनियों ने वैक्सीन की कीमत तय की है, जिसको लेकर विवाद शुरू हो गया है। कंपनी के केेंद्र सरकार को राज्य सरकारों से कम कीमत पर वैक्सीन देने पर सवाल खड़े किए गए हैं।