बता दें कि हम उसी सुल्ताना डाकू की बात कर रहे हैं जिसकी शख्सियत को लेकर बॉलीवुड ( Bollywood ) में कई बार फिल्में बनीं और हिट हुईं। सुल्ताना को यूरोप का रॉबिनहुड ( Robin Hood ) माना जाता था। यही वजह है कि सुल्ताना को पकड़ने के लिए ब्रिटेन से स्पेशल पुलिस अधिकारी ( Special Police officer Britain) को भी बुलाया गया था।
सुल्ताना डाकू एक ऐसा कैरेक्टर था जो अंग्रेजों के जमाने में अमीरों को लूटता था और गरीबों की मदद करता था। अंग्रेजी शासन ने 96 साल पहले 7 जुलाई, 1924 को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था।
सुल्ताना शुरुआत में छोटी-छोटी चोरी करता था। गुलाम भारत में पुलिस अधिकारी जफर उमर उसे एक बार गिरफ्तार करने में कामयाब हुए थे, जिस पर उन्हें पांच हजार रुपए का इनाम अंग्रेजी हुकूमत की ओर से मिला था। जफर उमर की बेटी हमीदा अख्तर हुसैन राय पुरी ने अपनी किताब ‘नायाब हैं हम’ में लिखा है कि जफर उमर ने सुल्ताना को एक मुठभेड़ में गिरफ्तार किया था।
वारदात का अलहदा तरीका जफर उमर द्वारा की गई गिरफ्तारी के बाद सुल्ताना जेल से बाहर आ गया। उसने अपने गिरोह को फिर से इकठ्ठा किया। इस बार उसने नजीबाबाद और साहिनपुर के सक्रिय लोगों से संपर्क किए और अपने भरोसेमंद मुखबिरों का जाल बिछाकर लूटना शुरू कर दिया।
उसे अपने मुखबिरों के जरिए मालदार लोगों की खबर मिलती थी। सुल्ताना हर डकैती की योजना बड़े ध्यान के साथ बनाता और डाका डालने में कामयाब होता। अपने जमाने के मशहूर शिकारी जिम कार्बिट ने भी अपने कई लेखों में सुल्ताना के बारे में लिखा है।
माना जाता है कि सुल्ताना डाकू निर्भय होकर डकैती डालता था। क्षेत्र के लोगों को मुखबिरों के जरिए पहले ही सूचित कर देता था कि श्रीमान पधारने वाले हैं। डकैती के दौरान वो खून बहाने से जहां तक हो सकता बचने का प्रयास करता था, लेकिन अगर कोई शिकार विरोध करता और उसे या उसके साथियों की जान लेने की कोशिश करता तो वो उनकी हत्या करने से भी परहेज नहीं करता था।अपने विरोधियों और जिनकी वो हत्या करता उनके हाथ की तीन उंगलियां भी काट डालता था।
कहा जाता है कि अमीर साहूकारों और जमींदारों के हाथों पीड़ित गरीब जनता उसकी लंबी आयु की दुआएं मांगते और वो भी जिस क्षेत्र से माल लूटता वहीं के जरूरतमंदों में बंटवा देता था।
सुल्ताना को पकड़ने ब्रिटेन से बुलाए गए अंग्रेज पुलिस अधिकारी सुल्ताना की डकैती के खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़े—बड़े अमीर और पुलिस अधिकारी तक उससे डरते थे। लेकिन अंग्रेजों के लिए इसे बर्दाश्त करना संभव नहीं था। अंग्रेजी हुकूमत ने पहले तो भारतीय पुलिस के जरिए सुल्ताना को ठिकाने लगाने की कोशिश की, मगर सुल्ताना के मुखबिर और गरीब देहातियों की मदद की वजह से वो अपने इरादों में कामयाब न हो सके।
थक हारकर अंग्रेजों ने सुल्ताना डाकू की गिरफ्तारी के लिए ब्रिटेन से फ्रेडी यंग नामक एक तजुर्बेकार अंग्रेज पुलिस अधिकारी को भारत बुलाया। फ्रेडी यंग ने भारत पहुंचकर सुल्ताना की सभी वारदातों का विस्तार से अध्ययन किया। फ्रेडी यंग ने बहुत कम समय में यह पता लगा लिा कि मनोहर लाल नामक एक पुलिस अधिकारी सुल्ताना का खास आदमी है। उसी की सूचना पर सुल्ताना बच निकलता है।
फ्रेडी यंग ने सबसे पहले मनोहर लाल का ट्रांसफर दूर के इलाके में कर दिया, फिर नजीबाबाद के बुजुर्गों की मदद से सुल्ताना के एक विश्वसनीय व्यक्ति मुंशी अब्दुल रज्जाक को अपने साथ मिलाने में कामयाब हो गया। सुल्ताना मुंशी अब्दुल रज्जाक पर सबसे ज्यादा भरोसा करता था। फ्रेडी यंग ने मुंशी अब्दुल रज्जाक की सूचना की बुनियाद पर सुल्ताना के चारों तरफ घेरा तंग करना शुरू कर दिया।
एक दिन फ्रेडी यंग के कहने पर मुंशी ने सुल्ताना को एक ऐसे स्थान पर बुलाया जहां पुलिस पहले से ही छुपी हुई थी। सुल्ताना जैसे ही मुंशी के बिछाए हुए जाल तक पहुंचा तो सेमुअल पेरिस नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने उसे अपने साथियों की मदद से काबू कर लिया। फ्रेडी यंग के इस कारनामे के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उसे तरक्की देकर भोपाल का आईजी जेल बना दिया गया।
सुल्ताना को गिरफ्तार करने के बाद फ्रेडी यंग उसे आगरा जेल ले आए, जहां उस पर मुकदमा चला। सुल्ताना समेत 13 लोगों को सजा-ए-मौत का हुक्म सुना दिया गया। इसके साथ ही सुल्ताना के बहुत से साथियों को उम्रकैद और काला पानी की सजा भी सुनाई गई। 7 जुलाई, 1924 को सुल्ताना को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।