सभी के लिए हैं अलग-अलग उत्तराधिकार नियम
आपको बता दें कि ये कार्यक्रम दो दिन के लिए आयोजित की गई है। इस दौरान पहले दिन मुंबई से आए डॉ. अनूप पी शाह ने बताया कि जैन, सिख और बौद्ध नागरिकों पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 लागू होता है, जबकि मुसलमानों में विवाह, उत्तराधिकारी और संपत्ति विभाजन जैसे मामलों में फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर किया जाता है। वहीं ईसाई, पारसी और यहूदी के लिए अलग से भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम बना हुआ है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक यदि कोई संयुक्त परिवार है तो उसमें एस्टेट प्लानिंग व वसीयत में उत्तराधिकारी का फैसला क्लास-1, क्लास-2 के संबंधियों के आधार पर होता है। अगर इस श्रेणी में कोई उत्तराधिकारी नहीं है तो एग्नेट्स यानी पिता के संबंधी और यदि वे भी न हों तो कॉग्नेट्स यानी माता के संबंधी उत्तराधीकारी हो सकते हैं। इस अधिनियम के मुताबिक पुत्र की संपत्त में मां पहले स्तर की उत्तराधिकारी हो सकती हैं लेकिन पिता नहीं। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में एक खास बात यह बताई गई है कि हिन्दू संयुक्त परिवार में कर्ता लड़की भी हो सकती है लेकिन शर्त यह है कि कर्ता वही संतान बनेगी जो बड़ी हो, चाहे वह लड़की हो या लड़का।