एक ऐसा कर्मठ व्यक्तित्व जिसने जिंदगी भर कठिन तप किया हो। कहने का मतलब यह है कि उन्होंने देश के सर्वोच्च संवैधानिक और नागरिक का पद यूं ही नहीं पा लिया। तभी तो उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद जिंदगी के उस मार्मिक क्षणों को याद किया था जिसे वह बचपन में अपने भाई-बहनों के साथ झेल चुके हैं।
इसलिए करते थे बारिश बंद होने का इंतजार राष्ट्रपति रामनाथ कोंविद ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का चुनाव जीतने के बाद अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा था के आज भी मुझे वो दिन याद है जब फूस की छत से पानी टपकता था और हम सभी भाई बहन दीवार के सहारे खड़े होकर बारिश के बंद होने का इंतजार करते थे।
आइए आज हम आपको उनके 75वें जन्मदिन पर बताते हैं उनकी जिंदगी के सफर के बारे में सबकुछ। Somnath temple trust president : केशुभाई पटेल दोबारा चुने गए न्यास के अध्यक्ष, पीएम मोदी बैठक में हुए शामिल
पहला स्वयंसेवक जो देश का राष्ट्रपति बना उनकी जिंदगी की शुरुआत करने से पहले एक और बात आपको बताता चलूं कि रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई स्वयंसेवक देश का राष्ट्रपति बना। इससे पहले रामनाथ कोविंद राजनीतिक सफर में कई पड़ाव से गुजरे। अब तक के जीवन में उन्होंने एक समाज सेवी, एक वकील और एक राज्यसभा सांसद के तौर पर काम किया। इन सबसे परे उनका इतिहास बहुत ही साधारण और सरल इंसान वाली है।
जायदाद के नाम पर आज भी उनके पास कुछ भी नहीं है दरअसल, रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर, 1945 को बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। उस वक्त हमारा देश गुलाम था। ब्रिटेन के लोग भारत पर शासन करते थे। उस समय किसी भी दलित परिवार के सदस्यों की जिंदगी काफी मुश्किलों भरा होता था। वर्तमान पीढ़ी के लोग तो उन दुश्वारियों के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उनके परिवार ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया और आगे बढ़ाया। आज भी उनके पास जमीन जायदाद के नाम पर कुछ नहीं है। एक घर था वो भी गांववालों को दान कर दिया।
गांव वालों को है कोविंद की काबिलियत पर नाज घर की माली स्थिति खराब होने और गरीबी की वजह से रामनाथ कोविंद बचपन में 6 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे और पैदल ही घर वापस लौटते थे। लेकिन कानपुर देताह के एक दलित परिवार में रहने वाले रामनाथ कोविंद के साथियों को आज उनकी काबिलियत पर नाज है। गांव के लोग राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की दरियादिली के भी कायल हैं।
कोर्ट फैसले के बाद खुश हुए Lal Krishna Advani, घर में ही लगाए ‘जय श्रीराम’ के नारे सुप्रीम कोर्ट से की वकालत की शुरुआत इन प्रतिकूल परिस्थितियों के बाजवूद कानपुर देहात की डेरापुर तहसील के गांव परौंख में जन्मे रामनाथ कोविंद ने सर्वोच्च न्यायालय में वकालत में से करियर की शुरुआत की। इससे पहले रामनाथ कोविंद ने दिल्ली में रहकर IAS की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की। लेकिन मुख्य सेवा के बजाय एलायड सेवा में चयन होने पर उन्होंने नौकरी ठुकरा दी थी।
1977 में बने मोरारजी के निजी सचिव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो वे वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव बने। जनता पार्टी की सरकार में सुप्रीम कोर्ट के जूनियर काउंसलर के पद पर कार्य किया। इससे पहले भी वो अपनी राह में आने वाले तमाम विरोधियों को पीछे छोड़ चुके हैं। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व के संपर्क में आए।
2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद कोविंद उत्तर प्रदेश से राज्यपाल बनने वाले तीसरे व्यक्ति बने। इससे पहले पार्लियामेंट की SC/ST वेलफेयर कमेटी के सदस्य, गृह मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, सोशल जस्टिस, चेयरमैन राज्यसभा हाउसिंग कमेटी मेंबर, मैनेजमेंट बोर्ड ऑफ डॉ. बीआर अबेंडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ भी रहे।
बीजेपी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी राजनीति की अंतिम जंग भी जीते राष्ट्रपति बनने से पहले बिहार के राज्यपाल बने वह 1994 से 2006 के बीच दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। पेशे से वकील कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रमुख भी रहे हैं। दो बार भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश के महामंत्री रह चुके हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले वह बिहार के राज्यपाल बने। इसके बाद रामनाथ कोविंद ने 25 जुलाई, 2017 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी।