नए नियमों के मुताबिक रेल अधिकारी आवासों पर टेलीफोन अटेंडेंट-कम-डाक खलसिस ( TDK ) के रूप में तैनात किए जाने वाला “बंगला चपरासी” ( Bangla Chaprasi ) को देने के अभ्यास को समाप्त करने का निर्णय लिया है। यह घोषणा रेलवे बोर्ड ने गुरुवार को की। इस फैसले के तहत ब्रिटिश युग ( British Era ) की विरासत की समीक्षा के बाद एक आदेश में की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रेलवे अधिकारियों ने Telephone Attendant-cum-Dak Khalasis ( TADKs ) की सेवाओं का दुरुपयोग करने की कोशिश की थी।
फिलहाल बंगला चपरासी की नियुक्ति से संबंधित मुद्दा रेलवे बोर्ड की समीक्षा के अधीन है। इसलिए, यह निर्णय लिया गया है कि TADK के रूप में नए चेहरे के किसी भी विकल्प को तत्काल प्रभाव से नहीं बनाया जाना चाहिए।
इसके अलावा 1 जुलाई 2020 से ऐसी नियुक्तियों के लिए अनुमोदित सभी मामलों की समीक्षा की जा सकती है और बोर्ड को सलाह दी जा सकती है। सभी रेलवे प्रतिष्ठानों ( Railway establishments ) में इसका कड़ाई से अनुपालन किया जा सकता है।
टीएडीके को शुरुआती 120 दिनों की सेवा के बाद ग्रुप डी श्रेणी में भारतीय रेलवे ( India Railway ) के अस्थायी कर्मचारी के रूप में माना जाता है। तीन साल की सेवा पूरी होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद पोस्टिंग स्थायी हो जाती है।
Beirut blast की वजह क्या है, किसे माना जा रहा है इसका जिम्मेदार? रेल मंत्रालय ( Railway Ministry ) के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय रेलवे चौतरफा प्रगति के तेजी से परिवर्तनशील मार्ग पर है। प्रौद्योगिकी और कामकाजी परिस्थितियों में बदलाव के मद्देनजर कई प्रथाओं और प्रबंधन उपकरणों की समीक्षा की जा रही है। उठाए गए उपायों को ऐसे संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
बता दें कि भारतीय रेल का इतिहास 168 साल पुराना है। देश में पहली रेल 16 अप्रैल, 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन जो कि अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से ठाणे के बीच चलाई गई थी। इस ट्रेन में लगभग 400 यात्रियों ने सफर किया था। पहली ट्रेन ने लगभग 34 किलोमीटर लंबे रेलखंड पर सफर तय किया था।