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Quit India Movement: आंदोलन में कांग्रेस की क्या थी भूमिका, जानिए लोग क्यों उतर आए सडक़ों पर

किप्स मिशन की असफलता के बाद कांग्रेस ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई में ग्वालिया टैंक मैदान में एक बैठक बुलाई थी। इसमें प्रस्ताव पास हुआ कि भारत की पूर्ण आजादी के लिए यह जरूरी हो गया है कि ब्रिटिश सरकार से मुक्ति पाई जाए।
 

Aug 09, 2021 / 08:54 am

Ashutosh Pathak

नई दिल्ली।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) की आज 79वीं वर्षगांठ हैं। महात्मा गांधी के नेतृत्व में 8 अगस्त 1942 को इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जानते हैं। आजादी की लड़ाई में यह आंदोलन काफी महत्वपूर्ण था। इस आंदोलन में तब विभिन्न संगठनों की भूमिका अलग-अलग थी। ऐसे में आइए जानते हैं तब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का इस आंदोलन को लेकर क्या रुख था-
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की दक्षिण-पूर्व एशिया में हार होने लगी थी। जापान लगातार हमले किए जा रहा था। इसी बीच, मित्र देशों ने ब्रिटेन पर दबाव डालना शुरू किया कि वह भारतीयों का समर्थन हासिल करने के लिए कुछ पहल करे, क्योंकि इस युद्ध में ब्रिटेन के लिए भारतीयों को समर्थन जरूरी हो गया था। ब्रिटेन ने बिना किसी सलाह-मशविरा के भारत को भी युद्ध में शामिल कर लिया। इससे कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार में गतिरोध पैदा हो गया था।
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किप्स मिशन की असफलता के बाद कांग्रेस ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई में ग्वालिया टैंक मैदान में एक बैठक बुलाई थी। इसमें प्रस्ताव पास हुआ कि भारत की पूर्ण आजादी के लिए यह जरूरी हो गया है कि ब्रिटिश सरकार से मुक्ति पाई जाए। महात्मा गांधी ने इस बैठक में करो या मरो का नारा दिया। इसका उद्देश्य था कि इस आंदोलन की मदद से या तो आजादी हासिल की जाए या फिर अपनी जान दी जाए। यह नारा हर भारतीय की जुबां पर छा गया।
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत छोड़ो शब्द युसुफ मेहर ने बनाया था। इस आंदोलन में भारतीय कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेताओं को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार कर लिया गया। तब कांग्रेस नेता अरुणा आसफ अली ने कांग्रेस के बचे हुए सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने 9 अगस्त को ग्वालिया मैदान में भारतीय ध्वज फहराया। कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी की खबर मिलते ही लोग भी आक्रोशित हो उठे और विद्रोह शुरू कर दिया। रेलवे लाइन, पुलिस थानों और सरकारी भवनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। बैंक लूटे गए।
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तब आंदोलन को दबाने और लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जनता पर बड़े पैमाने पर जुर्माना लगाना शुरू कर दिया। विद्रोह कर रहे लोगों को कोड़े मारे गए और भीड़ पर फायरिंग भी की गई। सभाओं और बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिए गए। इसके बाद भी कई नेताओं ने आंदोलन को जारी रखा और अंदर ही अंदर गतिविधियां करते रहे।

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