दरअसल, महिला को अस्पताल ले जाने के लिए सरकारी एंबुलेंस का लंबा इंतजार करना पड़ता। वह इस दौरान वह बच्चे को जन्म दे सकती थी। महिला की नाजुक स्थिति का ख्याल रखते हुए डॉक्टर ने मानवीयता का परिचय दिया और महिला को उपचार के लिए 20 किलोमीटर दूर पीएचसी तक पहुंचाने का काम किया।
इस बात की पुष्टि महबूबाबाद के डीएम ने ट्वीट कर की है। महबूबाबाद के जिलाधिकारी वीपी गौतम ने भी सोशल मीडिया पर शेयर कर डॉ. मुकरम के काम की प्रशंसा भी की है। साथ ही मुकरम के काम को उदाहरण पेश करने वाला बताया है।
जानकारी के मुताबिक मंगलवार देर शाम महबूबाबाद जिले के कोलाराम गांव की रहने वाली 28 साल की गर्भवती आदिवासी महिला गट्टी मंजुला को गर्भ का दर्द उठा था। दर्द इतना असहनीय था कि वह किसी भी वक्त बच्चे को जन्म दे सकती थी। उसे तुरंत अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र ले जाने की जरूरत थी। लेकिन उसके गांव से नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दूरी 20 किमी थी। साथ ही एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं थी।
Weather Forecast : इस बार समय से पहले आ रहा है मानसून, Delhi में 23 जून तक दस्तक देने की संभावना महिला की नाजुक स्थिति और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर मोहम्मद मुकरम के पास मदद के लिए फोन आया। इसके बाद वह जंगलों के बीच से कार चलाते हुए गांव पहुंचे और महिला को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे।
गर्भवती आदिवासी महिला को पीएचसी पहुंचाने के बाद डॉ. मुकरम ने बताया कि मंगलवार की शाम मैं करीब साढ़े आठ बजे घर जाने की तैयारी कर रहा था। तभी कोलाराम गांव की आशा वर्कर पद्मा का फोन आया। आशा वर्कर ने कॉल को इमरजेंसी केस बताया था।
मैं जानता था कि एकलौती उपलब्ध एंबुलेंस दूसरी पीएचसी जा चुकी है। एंबुलेंस का इंतजार करने का कोई औचित्य नहीं था। इसलिए मैंने अपनी कार निकाली और गांव पहुंचकर महिला को लेकर पीएचसी पहुंच गया। डॉक्टर ने कहा कि मैं सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था।
बता दें कि डॉ. मुकरम को 2017 और 2019 में बेस्ट मेडिकल ऑफिसर का अवॉर्ड मिल चुका है। उन्होंने कहा कि सभी डॉक्टर अच्छा कार्य कर रहे हैं। इस एक मामले में समय की कीमत थी। इसलिए मैंने दो बार नहीं सोचा।
CRY Report : लॉकडाउन के चलते 5 साल से कम उम्र के 50% बच्चों को नहीं लगे टीके जंगलों के बीच सिंगल लेन सड़क पर कुल 70 किमी कार ड्राइव करके रात 9:30 बजे गंगाराम पीएचसी पहुंचे। वहां गट्टी मंजुला ने 2.8 किलो के नवजात को जन्म दिया। लेकिन उसका रंग नीला पड़ गया। इसके बाद डॉक्टरों ने बच्चे को रिवाइव किया। डॉ. मुकरम का कहना है कि इसीलिए उसे पीएचसी पहुंचाना जरूरी था, नहीं तो वह बच्चा खो देती या उसकी जान को खतरा होता।