कोरोना के बाद ज्यादा खतरा भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी (इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स) ने इस संबंध में केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में बताया गया है कि कैसे असरदार ढंग से बच्चों को कोरोना वायरस की अगली लहर में प्रभावित होने से बचाया जा सकता है। हालांकि, डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस से ज्यादा खतरनाक, इससे बाद वाले दुष्प्रभाव (पोस्ट-कोविड इफेक्ट्स) हैं, जो बच्चों की जिंदगी के लिए खतरा बन सकते हैं।
इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिशियंस (कर्नाटक चैप्टर) में संक्रामक रोगों के अध्यक्ष डॉ. रविशंकर ने कहा कि इस परिदृश्य की तुलना जानलेवा संक्रमण ब्लैक फंगस (म्यूकोर्माइकोसिस) से की जा सकती है जो कोरोना संक्रमित मरीजों और इससे ठीक हो चुके व्यक्तियों में देखने को मिली है।
बच्चों में मिली एंटीबॉडी वॉलेंटरी सीरम सर्वे के रूप में कर्नाटक के कुछ डॉक्टर्स विभिन्न समस्याओं के चलते अस्पताल पहुंचने वाले बच्चों की जांच कर रहे हैं और यह भी टेस्ट कर रहे हैं कि क्या उनमें कोरोना वायरस की एंटीबॉडी हैं या नहीं। डॉ. रविशंकर के मुताबिक 30 फीसदी बच्चे पहले ही कोरोना वायरस से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं।
उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए वयस्कों के घर पर रहने से बच्चों में इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है। इनमें से ज्यादातर बिना पता चले ही संक्रमण से बाहर भी आ गए।
कोरोना का असर है बुरा उन्होंने बताया कि तीसरी लहर में कोरोना वायरस खुद बच्चों को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि अन्य गंभीर समस्याएं जैसे MISC (मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम ड्यू टू कोविड) बड़ा खतरा बन सकता है।
दिल पर असर डॉ. रविशंकर ने कहा, “यह एक नई परेशानी है जो कोविड-19 से ही निकला है। आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से संक्रमित होने के पांच से छह सप्ताह बाद इससे प्रभावित होते हैं। वयस्कों की तरह बच्चों का इम्यूनिटी स्तर तेजी से नहीं बढ़ता है। इसलिए 90 फीसदी मामलों में दिल को प्रभावित करने वाली यह परेशानी बेहद खतरनाक तेजी से काफी ब़ड़ा खतरा बन सकती है।”
बुखार और लाल चकत्ते उन्होंने आगे बताया, “छोटे बच्चों के फेफड़ों में पर्याप्त रिसेप्टर्स नहीं होते हैं, इसलिए कोविड से होने वाले गंभीर नुकसान का खतरा कम होता है। MISC के साथ सबसे बड़ा जोखिम इसकी तेज रफ्तार को लेकर है जो बेहद तेजी से हालत बिगाड़ देती है। शुरुआती लक्षणों में बुखार और पूरे शरीर पर चकत्ते होते हैं। इन चकत्तों में खुजली नहीं होती, जो इस बात की ओर ईशारा करती है कि इन चकत्तों की वजह एलर्जी नहीं है।”
तुरंत अस्पताल ले जाएं डॉ. रविशंकर ने कहा, “हो सकता है कि बच्चे को एक माह पहले सर्दी-जुकाम हुआ हो या फिर उसे घर में या बाहर कोरोना संक्रमण हुआ हो। दोनों ही मामलों में जब बुखार और चकत्तों के साथ पल्स और ब्लड प्रेशर तेजी से गिरने लगे, बच्चे को तुरंत नजदीकी अस्पताल लेकर पहुंचे। शुरुआती जांच में CRP, EFR, कंपलीट हीमोग्राम, प्लेटलेट काउंट और कोविड एंटीबॉडी टेस्टिंग शामिल होनी चाहिए।”
बेहद तेजी से बिगड़ती है हालत उन्होंने आगे कहा, “ऐसे मामलों में कार्डिएक अरेस्ट की आशंका होती है, इसलिए बच्चे को आईसीयू में शिफ्ट करने के साथ ही लगातार निगरानी करनी चाहिुए। सबकुछ इतना तेजी से होता है कि बच्चा 24 से 48 घंटों के भीतर नाजुक (क्रिटिकल) हालत में पहुंच जाता है। इसका सबसे बड़ा बचाव केवल शुरुआती जांच है और लोगों को इन लक्षणों के बारे में जागरूक करना चाहिए ताकि देरी से अस्पताल पहुंचाने के चलते होने वाली मौतों को रोका जा सके।”